Saturday, June 14, 2008

गुरु वंदना

गुरु गोविन्द दोनो खडे काके लगूँ पाये
बलिहारी गुरु आपनो जो गोविन्द दीयो मिलाये

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरु देवो महेश्वर:
गुरु साक्षात् परा ब्रह्म त्स्मये श्री गुरुओ नमः:

सात समुंद की मस्सी करूं लेखनी सब वन राय
धरती सब कागद करूं गुरु तेरो वर्णन कियो ना जाये

कबीर बैठा छत पे जोर जोर चिल्लाए
देखो गुरु आ गए कोई पांव धोवो जाये
मैं तो माटी का लोंदा मुझे मूरत दीयो बनाए

कबीरा तेरी वाणी बोले राम के नाम
किसने तुझे बोल्यो तू भज राम को नाम

...........कहे कबीरा सुन भाई साधो
मेरे गुरु तो तर गए और मुझे दे गए जपने को नाम

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कुछ ना होते हुए भी हंसाते है दुनिया
कुछ सब कुछ होते भी दुनिया के अन्देसे से जलते है मिया

हमारी तो कुछ बात ही और है, तुम्हारे दिल मैं रहते हैं हर लह्मा
तुम्हारे दिदार को तरसते हैं बाकि तो बेकार है दुनिया

1 comment:

Anonymous said...

guru ki jagha sabse upar hoti hai. likhate rhe.