आज जिधर देखो उधर अंकल साम
चाहे पूर्व या पश्चिम जिधर देखो उधर दादागीरी मचा रहा है
यानी इस दुनिया में दादा का शोर हो रहा है
पता है दादा यह सब क्यू कर रहा है;
शायद दुनियाँ को दादा-११ सितम्बर का तोहफा बाँट रहा है!
नहीं यारों ........................
दादा बुढा हो गया है
दादा सठिया गया है
दादा कमजोर हो गया है
दादा खांस रहा है
दादा टूट रहा है
दादा बुझते चिराग की आखिरी लौ की तरह चमचमा रहा है
दादा तोहफा नहीं अपनी बदकिस्मती बाँट रहा है
देखो दादा का सांड इधर आ रहा है
दादा ही नहीं उसका गुर्गा भी गुर्रा रहा है
दादा की शह पर इतरा रहा है
हम पीटते हैं फिर भी गरिया रहा है
अफगान बांग्ला देख कर भी पगला रहा है
लालकिले पर चाय पीने का ख्वाब उसे आ रहा है
हम दादा के दादा - उस के बाप
...............वोह भुला जा रहा है
Monday, June 9, 2008
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1 comment:
वाह-वाह, बहूत सुन्दर
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