Monday, June 9, 2008

दादागीरी का जवाब

आज जिधर देखो उधर अंकल साम
चाहे पूर्व या पश्चिम जिधर देखो उधर दादागीरी मचा रहा है
यानी इस दुनिया में दादा का शोर हो रहा है
पता है दादा यह सब क्यू कर रहा है;
शायद दुनियाँ को दादा-११ सितम्बर का तोहफा बाँट रहा है!

नहीं यारों ........................

दादा बुढा हो गया है
दादा सठिया गया है
दादा कमजोर हो गया है
दादा खांस रहा है
दादा टूट रहा है
दादा बुझते चिराग की आखिरी लौ की तरह चमचमा रहा है
दादा तोहफा नहीं अपनी बदकिस्मती बाँट रहा है


देखो दादा का सांड इधर आ रहा है
दादा ही नहीं उसका गुर्गा भी गुर्रा रहा है
दादा की शह पर इतरा रहा है
हम पीटते हैं फिर भी गरिया रहा है

अफगान बांग्ला देख कर भी पगला रहा है
लालकिले पर चाय पीने का ख्वाब उसे आ रहा है
हम दादा के दादा - उस के बाप
...............वोह भुला जा रहा है

1 comment:

आशीष कुमार 'अंशु' said...

वाह-वाह, बहूत सुन्दर