कुछ
खो के पाया
कुछ पा के खोया।
हार के भी जीता हूं
जीत के भी हारा हूं।
बचपन बीता जवानी आई
खुशहाली कितनी ही
आंधी तूफान भी लाई।।
आसमान को भी छुया
पाताल भी नापा।
दुश्मन भी मिले
दोस्तों से भी नाता।।
राहगीर बने हमदम
हमदम बने हरजाई
कोई तरक्की पर जल राख हुए
कितनो ने गिरने पर खुशी मनाई।।
एक सहारा तेरा
मंदिर में जलता दीपक सा मन मेरा
हर दुख, हर हार तेरा प्रसाद
हर जीत, हर दुख तेरा वरदान।
दोस्तों की दगा, तेरी वफ़ा
ग्रहस्ती का सुख
सब भरपूर मिला... बे भाव मिला।
आज इस मोड पर
पीछे मूड कर
जब देखता हूं क्षितिज में
भूत में, वर्तमान में
तो दिखती है एक लंबी सड़क
जो तेरे कंधे पर ही मैने पार की।।
ठोकरें भी याद आई
अपने का बिछोह,
चोट, बीमारी, दर्द भूख
जो टसक टसक मन पे छाई।।
पर मन में,
प्रभु, तेरा आसरा,तेरा सहारा
तुझ पर अटूट विश्वास
चलता रहा अडिग, अचल, अटल।।
आज मैं जहां हूं उस और
हर बढ़ता कदम तुझे अर्पण
मेरा रोम रोम तेरा ऋणी
हर जीत है तेरा दर्पण
मुझ गिरते को तूने ही संभाला
संघर्ष में मेरी ढाल तू
आसमान पर तूने ही बैठाला।
परन्तु
यह दुनिया
मुझे सिकंदर मानती है
जीत का प्रतिबिंब,
समाज का नेता
दीन दुखी का सहारा
जरूरत में सहायक हाथ मानती है।
सब तेरा अजूबा है जैसे कि
मैं विजय के लिए ही जन्मा हूँ।
मानती है।
मैं तो जैसा था, वैसा ही हूं, वैसा ही रहूंगा
लोगों का
बीते कल में तिरस्कार
आज को सलाम,
कल का पता नहीं
ठोकर, चार कंधे - एहतराम........
डा श्रीकृष्ण मित्तल
26.9.2025

