Saturday, November 2, 2024

आ गई लुगाइयां महरुआ दिलरुबा

 घर में जब से आ गई लुगाइयां

दिल बाहर लगता नहीं मेरे भैया
पुकारती सपने में आती पप्पू की मैया
घर तो रीता बीरान भया
दिन कटत नहीं रात बीतत नाही
जब से वो रूस गई, अपने पीहरुआ
पायल लीनी,झांझर लीनी
लियो गले को कण्ठा
उसकी चाह की चुनरिया लीनी,
लियो मिठाई का डब्बा
मनावे खातिर लियो बीड़ा
नहीं मानी दुलारी महरुआ
दिन बीतो रात भई
छमक छमक आई दिलरुबा
कंठ लगी, सब भुलाए,
ऐसी रूपवती, लुगाइयां
यारों
अधूरी थी जिंदगानी
पतझड़ थी जवानी
सखा, सखी मा बहिन भाई
सबसी अनूठी आई दिलरुबा
पूनम सी चांदनी, दरिया की लहर
भोर की पहली किरण
दिल मे उतर गए,
भेद गए
झरोखे से झांकते कजरारे
जब से आई लुगाइयां
सच में यारों, भूल गए
सब सारे,
रह गई सिर्फ याद में महरुआ