Monday, October 20, 2008

शब्दों में भी कंजूसी

आप को एक कंजूस सेठ की कथा सुनाते है

एक नगरसेठ नामी कंजूस था उसके एक साधू पधारे और उसे प्रभु आराधना का उपदेश दिया. उसने खर्च का रोना रोया तो मानसिक पूजा का तरीका समझाया.
सेठ ने रोज रात शयन से पहले मानसिक पूजा प्रारम्भ कर दी. पहिले गंगा जल से स्नान करा, पुष्प चढा. दीप दर्शन के बाद शक्कर का भोग अर्पण करने का अभिनय करता था. " जैसे चम्मच हाथ में हो शक्कर के पात्र से निकाल चढाने के साथ प्रभु भोग लगाओ" बोलता था.

एक दिन शायद सोने की हडबडी में गलती से दो बार भोग अर्पण कर बैठा.
तुरन्त ख्याल आया अररे क्या अनर्थ हो गया ? भगवान जी को तो ज्यादा शक्कर खाने से मधुमेय रोग हो जायेगा और तुरंन्त उच्चारण किया प्रभु एक चम्मच वापिस ली.
प्रभु को बड़ा गुस्सा आया और प्रगट हो उसका हाथ पकड़ बोले अरे कंजूस इस मानसिक अर्पण में भी तेरा कुछ लग रहा था क्या?

उधर कंजूस सेठ रो रहा और नाच रहा था. क्यों? इतने दिन शक्कर चढाई आज ही क्यों वापिस ली अगर पता होता की वपिस लेने से प्रभु प्रगट होते हैं तो पहिले दिन ही वापिस ले लेता

शक्कर भी लगी और प्रभु दर्शन भी देर से हुए



कैसी लगी कथा ?

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