तुझे देख कर याद आते हैं कुछ जंगल के रास्ते
चलते थे हम तुम साथ साथ एक दुसरे के वास्ते॥
घर में कमरा एक और एक दरी होती थी
याद है रात को टांग कर दरी पार करते थे सदिओं के फासले ॥
दरी के इस पार तुम हम और उस पार दुनिया सोती थी
अररे, वोह भी क्या हसीन खुशनुमा मधुरात्रि होती थी ॥
आज दूरियां मिट गयी इंटरनेट आ गया
वेबकेम ने बंद कमरे का रहस्य भी दुनिया को दिखा दिया ॥
एक घर में चार कार, दस फोन होते हैं
हर कमरे में टी वी और टेप सजे होते हैं ॥
फिर भी दूरियां दिलों की इतनी हो गयी
मतलबपरस्ती इंसान की कहानी हो गयी ॥
कुरान, बाइबल, भागवत रामायण बासी होगयी
खता लह्मो ने करी, कहानी सदिओं की हो गयी ॥
आओ फिर उन लह्मो में खो जायें
वोही जंगल हो, हम तुम हों डाल के गलबाहें ॥
Sunday, October 12, 2008
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