Wednesday, October 8, 2008

जीवन की सच्चाई

कभी कभी दिल की आग को भड़काने के लिए ।
प्रितम के दिल में अपने को जानने के लिए ॥

दुनिया को अपने प्यार की किताब पढाने के लिए।
कसमे वादों को फिर से दोहराने-अजमाने के लिए ॥

चकोर ढूंढ़ता,चाँद भी बदली में छिप जाता है ।
दिवाना भी इसरार करवाने के लिए गुम जाता है ॥

ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ ।
मैं ने भी कुछ ऐसा ही किया ॥

'या' शायद अनजाने में मै चाहने वालों से दूर हुआ ।
दिल बेकरार था दिन चैन रात नींद से मरहूम हुआ ॥

तपन मुझे भी उतनी ही चढी थी ।
आग इधर भी इतनी ही लगी थी ॥

रोज सोचता था यारों की हसने हसाने की बातें ।
रोज सुबह शाम जो होती थी बातें - मुलाकातें ॥

जब वापिस आया तो क्या देखा?
जो दम भरते थे महोब्बत का उन्हें नादारद देखा ॥

कुछ असली आशिको ने ढूँढ मचा दी थी ।
आर्कुट थाने में रपट लिखा दी थी ॥

आ कर मैं ने रपट की कार्यवाही देखी ।
उस पर अपनी स्याही से इबादत फैंकी॥

आपका शुक्रिया जो आप ने इतना मान दिया ।
अपने को हमारा हमदर्द साबित कर हमे गुलाम किया॥

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