Saturday, October 25, 2008

गुरु को संदेश


गुरुदेव का आशीर्वाद बडी मुद्दत बाद मिला
जैसे डूबते जहाज को सिंदबाद मिला

हम तरसते थे गुरु ज्ञान पाने को
अपने क ख ग सुनाने और मार खाने को

एक समय ऐसा आया
गुरु ने हमे दिल से दूर हटाया

हमे मालूम ना हुयी त्रुटी हमारी
क्यों गुरुदेव ने हमारी यादें बिसारी

महीने कई बीत गये
गुरु हमे भूल गये

आज दिवाली आई है
शायद गुरुमन में प्रीती पुनः आई है

धन्य हुआ जीवन हमारा आप का संदेश आने से
मन गयी दिवाली, छूटे पठाखे, पेट भर गया खाने से

अब अगर भुलाया तो हम भी आपके चेले हैं
फिर नही कहना, बेसुरे, नाकारा, अलबेले हैं

तुम हमे छोड़ दोगे हम 'यह' दुनिया छोड़ देंगे
गुरु ही नहीं तो हम मान किसे देंगे

दीपावली पर आपने नया विषय उठाया है
बिल्कुल ठीक फरमाया है

दीपावली का प्रकाश



दीपावली प्रकाश और दिलों के मिलने का त्यौहार .
दीपावली ख़ुशी और उमंग का त्यौहार

हर वर्ष हम गणपति लक्ष्मी मनाते हैं
रिद्दी सिद्दी, धन दौलत, सुख शांति मनाते हैं

राम का राजतिलक उत्सव सदियों से मनता आया है
आज फिर वही अवसर आया है

शुभ हो यह अवसर खुशीआं भरपूर पाओ
लक्ष्मी पूजन करो गणपति को रिझाओ

मित्तल परिवार की बधाई और शुभ कामना सुनो और बांटो
जो खुशीआं मिले उन्हें जरुरतमंदों में भी बाटों

Thursday, October 23, 2008

मानस शोर्य कामना

जिसने भी तुम्हारा नाम मानस रखा होगा
तुम्हारे नामकरण के बाद इतहास बन गया होगा

हम बचपन से सुनते हैं
खत्री बहुत सुंदर होते है

आज हम देख रहे है
सुंदर ही नही रचियक भी पा रहे हैं

इस उम्र में तुम्हारा यह हाल है
जल्द बडे हो जाओ खाली पडे हाल हैं

तुम्हे बहुत आगे जाना है
दुनिया को बहुत कुछ सुनाना है

आज स्कूल की पुस्तिका में स्थान मिलता है
कल विश्व प्रसारण में उच्च स्थान दिखता है

हर फिल्म में हीरो कवि और गायक होता है
सुना के अपनी कविता कविताओं को मोहता है

तुम्हारी भी उम्र आने वाली है
इस कला की जरूरत तुम्हे जल्दी ही पड़ने वाली है

अपने जैसी ही नायिका का वरन करना
जो तुम्हारी प्रेरणा बन सके ऐसी का चयन करना

कुछ वर्ष शादी के बाद अपने जैसा चिराग जलाना
उस भी मानस यानी मानसपुत्र खत्री बनाना

और क्या लिखें आज इतना काफी है
हमारा आशीर्वाद, आशीष, तुम्हारा साथी है

*********************

रामचरित 'मानस'

तेरे प्यार की क्या तारीफ करूं कुछ कहते हुए मैं डरता हूँ
कहीं भूल से यूँ ना समझ लेना की मैं तुम से महोब्बत करता हूँ

सात समुन्द्र पार से मैं लेता हूँ तुम्हारी बलैयां
तुम अयोध्यावासी मैं तो केवल रामभक्त हूँ भैया

हम हैं दंडकारन्य लंका के पडोसी महिसासुर की नगरी के दक्षिणवासी
तुम पढ़ लिख राम बनाना आना इधर बन सन्यासी

सीता जैसी कोमलांगी तुम्हारे साथ हो और लक्ष्मण जैसा भाई
हनुमान मिलेंगे यहाँ तुम बनाना तुलसीदास की चौपाई

लिखना पढेंगे सभी ध्यान से
तुम भी तर जाओगे हम भी पार उतर जायेंगे इस जहान से

Monday, October 20, 2008

शब्दों में भी कंजूसी

आप को एक कंजूस सेठ की कथा सुनाते है

एक नगरसेठ नामी कंजूस था उसके एक साधू पधारे और उसे प्रभु आराधना का उपदेश दिया. उसने खर्च का रोना रोया तो मानसिक पूजा का तरीका समझाया.
सेठ ने रोज रात शयन से पहले मानसिक पूजा प्रारम्भ कर दी. पहिले गंगा जल से स्नान करा, पुष्प चढा. दीप दर्शन के बाद शक्कर का भोग अर्पण करने का अभिनय करता था. " जैसे चम्मच हाथ में हो शक्कर के पात्र से निकाल चढाने के साथ प्रभु भोग लगाओ" बोलता था.

एक दिन शायद सोने की हडबडी में गलती से दो बार भोग अर्पण कर बैठा.
तुरन्त ख्याल आया अररे क्या अनर्थ हो गया ? भगवान जी को तो ज्यादा शक्कर खाने से मधुमेय रोग हो जायेगा और तुरंन्त उच्चारण किया प्रभु एक चम्मच वापिस ली.
प्रभु को बड़ा गुस्सा आया और प्रगट हो उसका हाथ पकड़ बोले अरे कंजूस इस मानसिक अर्पण में भी तेरा कुछ लग रहा था क्या?

उधर कंजूस सेठ रो रहा और नाच रहा था. क्यों? इतने दिन शक्कर चढाई आज ही क्यों वापिस ली अगर पता होता की वपिस लेने से प्रभु प्रगट होते हैं तो पहिले दिन ही वापिस ले लेता

शक्कर भी लगी और प्रभु दर्शन भी देर से हुए



कैसी लगी कथा ?

इश्क की नियामत

हम अभी जवान है और मरने से डरते हैं
हम अभी जीना चाहते हैं क्यों की तुम पर मरते हैं

तुमसे मिलने को बहाने किसे चाहिए
हम तो तुम्हारी तस्वीर दिल में छुपा के रखते हैं

तुम कबूल करो या ना करो दुनिया को खबर है की
तुम और हम एक दूजे पर जाँ छिडकते हैं

आसमा है रकीब इश्क का
इसही लिए तो तुम हम कमरे में बंद रहते हैं

तुम हंसो हम देखें, हम हसें तुम देखो
येही इसरार खुदा से हम करते हैं

जख्म कोन जालिम भरना चाहता है
हम तो तुम्हारे दिए घाव इश्क की नियामत समझते हैं

जवाब के जवाब का जवाब

तुम्हारे हुस्न की तपस में
तुम्हारे इश्क की गर्मी में
तुम्हारे आंचल की ठंडक में
तुम्हारे हाथों के खनकते शोर में
तुम्हारी पायल की झंकार में
तुम्हारे हाथों से प्याले में

कोन जालिम बहरा, अँधा, गूंगा, पागल ना हो जाये

हम भी शायद उन्ही में से एक हैं
हुजुर इसलिए खो गये

शनि को कोन जाने
यहाँ तो पूरा हफ्ता ही सो गये

तुम्हारा कया हाल है ?
कम तो नही होगा

इतवार आये या ना आये
दिल में हमारा संदेश ही होगा
=======Reply to reply===========
क्या ये सच है ??!!
"आपकी खुशनुमा आहट दिन या रात
लाती हर किसी के चेहरे पर
दूध सी
गुलाब सी
लोबान सी
धुप सी
चाँद की चमक सी मुस्कुराहट !!"

शायाद ये सच ही है .....
नहीं तो.....
आपने ये कैसे नोट नहीं किया के आज sunday नहीं saturday है!!
मैंने ग्रीटिंग तो sunday का भेजा था!!
शायद ....
"दूध सी
गुलाब सी
लोबान सी
धुप सी
चाँद की चमक सी मुस्कुराहट में खो गए थे!!
हा हा हा हा ....
------Reply-------------
गुड मोर्निंग नमस्कार

सीता को देनी पडी अग्निपरिक्षा क्यूं
इम्तेहां गैर इत्फाकी का दूसरा नाम यूं


अंधियारों में भी खिलते है फूल
धूल में ही लगते है मुलायम फूल
आपकी खुशनुमा आहट दिन या रात
लाती हर किसी के चेहरे पर
दूध सी
गुलाब सी
लोबान सी
धुप सी
चाँद की चमक सी मुस्कुराहट
----------Message------------------
गुड मोर्नींग गुरु देव ....

इम्तेहाँ मुशीबत और भला ..
अधियारो में कोई है खिला ..
बेचैन बहारो की आहट..
चहरे में चित चितवन सजती
लोबान सी ख़ुश्बू मुस्कराहट

Monday, October 13, 2008

यु आर वैरी ग्रेट

तुसी सानु ग्रेट कहंदे हो
ग्रेटदा मतलब भी समझदे हो ॥

अस्सी त्वानू एक असली वाकया सुनांदे ने
तुवाणु ग्रेट दे अंदर दा मतलब समझान्दे ने ॥

इक यारनु भाभी जी तुस्सी बडे ग्रेट हो कहंदी आदतसी
सानु सुनके लगदी सी दिल ते छुरे घोपन सी ॥

अस्सी एक दिन पूछ बैठे
राज ओउद्दी गल दा खोल बैठे ॥

अस्सी पुछिया ओये सालेया सिर्फ भाभिआं ही क्यों ग्रेट होंदी हैं
अस्सी कया सोने नहीं या भाभिआं की ज्यादा दुद्द देंदी हैं ॥

सुन के अस्सी हैरान हुए,
उस कुत्ते दी गल ते हंस के लोटपोट हुए ॥

उसने अपने बचपन दा ईक वाकया सुनाया
सच्च था बचपन में उसे डकैतों ने था उठाया ॥

यारा जो हालात उन्होंने मेरी दो दिना में बनादेयी सी
वोह तो इन् भाभियाँ नु रोज सहना पडदा ही।।

इसही लिए इनाणु मैं भाभी जी यु आर वैरी ग्रेट कहंदा हूँ
मैं भी उसदिनतो जो ग्रेट कहंदा उनु भाभी वल समझदाहूँ ॥

कैसी लगी मेरे ग्रेट दोस्त को यह कहानी
अर्थ समझा या फोन कर पूछ ले जानी ॥

Sunday, October 12, 2008

हम सफर की याद

तुझे देख कर याद आते हैं कुछ जंगल के रास्ते
चलते थे हम तुम साथ साथ एक दुसरे के वास्ते॥

घर में कमरा एक और एक दरी होती थी
याद है रात को टांग कर दरी पार करते थे सदिओं के फासले ॥

दरी के इस पार तुम हम और उस पार दुनिया सोती थी
अररे, वोह भी क्या हसीन खुशनुमा मधुरात्रि होती थी ॥

आज दूरियां मिट गयी इंटरनेट आ गया
वेबकेम ने बंद कमरे का रहस्य भी दुनिया को दिखा दिया ॥

एक घर में चार कार, दस फोन होते हैं
हर कमरे में टी वी और टेप सजे होते हैं ॥

फिर भी दूरियां दिलों की इतनी हो गयी
मतलबपरस्ती इंसान की कहानी हो गयी ॥

कुरान, बाइबल, भागवत रामायण बासी होगयी
खता लह्मो ने करी, कहानी सदिओं की हो गयी ॥

आओ फिर उन लह्मो में खो जायें
वोही जंगल हो, हम तुम हों डाल के गलबाहें

Friday, October 10, 2008

आज का तब्सिरा

नाव चलाने वाले मल्लाह को गम था तो बस एक ही गम था ।
साहिल पे आके किस्ती जहाँ डूबी वहां पानी बहुत कम था ॥

देश की नाव और मल्लाह का भी येही हाल है
नाव में बैठे यात्री परेशान बेहाल है ॥

साहिल सामने नजर आरहा लेकिन मल्लाह गाफिल सो रहा ।
नाव आधी डूब चुकी किस्ती में सुराख़ हो चूका ॥

शेर गीदड़ बन गये शेयर बाज़ार ढह गया ।
सोना सुर्ख हो गया रूपया सौ का आधा रह गया॥

टकटकी लगी है सबकी इंतज़ार है साहिल से राहत के आने की ।
नाव को और पथिक को जीवनदान देने और कायनात बचाने की

उठो हिम्मत करो, मत देर करो, सब छुट जायेगा
जब देश ही नही रहा तो देशवासी कहाँ जायेगा

काशमिरिओं को संभाला हम वतनो ने
हम अगर डूबे,भागे,तो ठौर नहीं प्रभुचरणों में

Thursday, October 9, 2008

विजयदशमी पर्व का महत्व

विजयादशमी का पावन पर्व हमे कुछ याद कराता है ।
दशमुख के दहन की याद कराता है ॥

हम सदियों से जन्म मरण दिवस मनाते आए हैं ।
इस ही रूप में श्रधा के पुष्प चढाते आए हैं ॥

हरवर्ष ईद क्रिश्मस मनती है,गुरुनानक जयंती आती है ।
गाँधीजयंती ,बालदिवस और आधीअधूरी आजादी भी मनाई जाती है ॥

हर बच्चा अपनी वर्षगाँठ मनाता है।
हर जोडा शादी की सालगिरह पर बीबी के नाज़ उठाता है॥

आज देश में देशद्रोही मक्कारों की वर्षगांठ मनाई जाती है।
चारण चाटुकारों द्वारा उनकी झूटी महिमा सुनाई जाती है ॥

कल तक जो गबन के आरोपों में घिरे रहा करते थे ।
वोह आज देश के नेता और जनता खडी है सकते में ॥

आज अगर गांधी भी इस भारत में वापिस आ जायें ।
देख इटेलियन गांधियों को शायद वोह भी शरमा जाये ॥

त्रेतायुग ने दशानन के दस मुख दिखाए थे।
लालच, इर्षा, घमंड, द्वेष, परनारी आदि के पाप गिनाये थे ॥

रावण तो महाज्ञानी, पराक्रमी वेदपाठी, पोलत्सय था ।
इन्द्र यम कुबेर अग्नि वरुण विजेता तेजस्वी था ॥

आज कलयुग में भी रावण हैं।
जिस गली में चले जाओ एक दो नही बावन हैं॥

विजयदसमी की कल ही नही आज भी जरुरत है।
दसमुख से क्या होगा आज तो सौ की जरूरत है॥

आज (जनता) सीता (नेता) रावन की लंका में कैद हो गयी।
हनुमान दलाल बन गये सीता नीलाम हो गयी॥

विजय दसमी का पर्व नया संदेश लाता है।
दसमुख हों या सौमुख हों उनसे लड़ने को जगाता है ॥

एक दिन तो हर बच्चा राम बनना चाहता है।
आतंक, द्वेष, लालच,
देशद्रोह, मक्कारी, महंगाई,
गरीबी, बीमारी,छल कपट,
झूट, बेईमानी, लम्पटता
को जलाना चाहता है ॥

इस ही लिए यह पावन पर्व आता है।
राम नाम, राम राज्य, राम चरित्र की याद दिलाता है ॥

आओ हम भी यह विजय पर्व मनाये।
दसानन दहन का विशाल आयोजन करवाएं ॥

सीता को आजाद कराने की
दशानन को मार गिराने की
दलालों को भगाने की
विभिष्नो को दूर हटाने की
कीगरीबी, भुखमरी, बेकारी,
बदसलूकी, गद्दारी,चोरबाजारी,
आतंक, लालच, छलकपट, मक्कारी
दसमुखों को दहन करने की शपथ खाएं ।।

Wednesday, October 8, 2008

जीवन की सच्चाई

कभी कभी दिल की आग को भड़काने के लिए ।
प्रितम के दिल में अपने को जानने के लिए ॥

दुनिया को अपने प्यार की किताब पढाने के लिए।
कसमे वादों को फिर से दोहराने-अजमाने के लिए ॥

चकोर ढूंढ़ता,चाँद भी बदली में छिप जाता है ।
दिवाना भी इसरार करवाने के लिए गुम जाता है ॥

ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ ।
मैं ने भी कुछ ऐसा ही किया ॥

'या' शायद अनजाने में मै चाहने वालों से दूर हुआ ।
दिल बेकरार था दिन चैन रात नींद से मरहूम हुआ ॥

तपन मुझे भी उतनी ही चढी थी ।
आग इधर भी इतनी ही लगी थी ॥

रोज सोचता था यारों की हसने हसाने की बातें ।
रोज सुबह शाम जो होती थी बातें - मुलाकातें ॥

जब वापिस आया तो क्या देखा?
जो दम भरते थे महोब्बत का उन्हें नादारद देखा ॥

कुछ असली आशिको ने ढूँढ मचा दी थी ।
आर्कुट थाने में रपट लिखा दी थी ॥

आ कर मैं ने रपट की कार्यवाही देखी ।
उस पर अपनी स्याही से इबादत फैंकी॥

आपका शुक्रिया जो आप ने इतना मान दिया ।
अपने को हमारा हमदर्द साबित कर हमे गुलाम किया॥

Tuesday, October 7, 2008

हमारी कामना

खुश रहो
आबाद रहो

चैन से जीयो
सालों नाबाद रहो

हर सुबह नया सूरज देखो
हर रात नया चाँद ताको

हर पल को जीयो
यादों को दिल से ना बांधो

हर रात में दिन
हर गम में ख़ुशी

हर मा में ममता
हर माशूक में अदा

हर मन्दिर में बुत
हर काबे में खुदा

मिलता है चाहने वाले को
उठा नजर मिला जिगर

भूल जा गम
मना दीवाली रोज हर दम

हर दिन खुशनुमा होगा
हमे याद कर प्रेरणा ले रहा होगा

शिकायत - नई सुबह

तुम करो शिकायत हक तुम्हारा है
तुम से दूर रहे नसीब कसूर हमारा है ॥

कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है
दुसरे की गलती को भी ढोना पड़ता है ॥

अपने लक्ष्य को पाने, गोमाता को बचाने,
गोबर गोमूत्र के दाम ग्वाले को दिलवाने ॥

हम ने उद्योगपतियों को बुलाया था
इसे सत्य करने का बिदा हमने उठाया था ॥

आज इसके लिए खुद पहल कर बैठे हैं
मथुरा में गोवर्धन उद्योग की शुरुआत कर बैठे हैं ॥

दीपावली तक आशा है उत्पादन निकल आने
की पुरे देश में गोमाता के नाम का डंका बज जाने ॥

का गोबर से टाइल बोर्ड का पहला उद्योग होगा
आज पर्यावरण की समस्या - गोबर बिक रहा होगा ॥

हर गाय के गोबर का रु२० गोमूत्र का रु३० जिस दिन मिल जायेगा
कोन बेवकूफ उस गोवंश को कसाई के हाथ थमाएगा ॥

ऐसे लगता है ...........

बदले बदले से मेरे सरकार नज़र आते हैं
हमे तो........ बर्बादी के...... आसार नजर आते हैं
अगर आप फैन हमारे तो हम आपके कूलर हैं
आप गुरु - हम चेले ऑरकुट में साथ साथ खेले हैं
ऐसे लगता है ...........
आप कलाकार - मैं दर्शक
आप बादल - मैं कृषक
आप खुदा - मैं पूजा
आप हुस्न - मैं इबादत
आप हसीना- मैं इश्क
आप आप - मैं भी आप
मैं बेटा - आप मेरे बाप
आप जिन्दगी - मैं रवानी
आप नियामत - मैं जवानी
कैसी रही यह सीढ़ी
............बताना सानी

Sunday, October 5, 2008

वो सात समंदर पार गया

लल्लू ने स्कूल में लंदन रोम के बारे में पढ़ा था
ऊँचे मकान फैले मैदान देख उसका मन चला था ॥

सपने में आती थी उड़ते हवाई जहाज की आवाज और तस्वीरें
खुल जाती थी नींद जैसे उसने थे सात समुंदर उनमे पार करे ॥

जब भी किसी नजूमी,पंडित से मुलाकात होती
सिर्फ़ एक ही विषय पर बात होती ॥

मुह पर बताते उसके भाग्य में विदेश यात्रा
पीछे से कहते थे कोई पागल भी करता है विदेश यात्रा ?

सोचते सोचते दिन बीत गये साल निपट गये
लालू जी कक्षा 1२ से कोलेज में धमक गये ॥

दोस्त दिखाते थे ठाट से विदेशी माल को
लल्लू जी तड़पते थे रातों के देखे ख्याल को ॥

एक दिन कोलेज में घोषणा हुयी
अमरीका से चुनाव समिति आने की तिथि तय हुई ॥

लल्लू जी ने भाग लेने की तयारी करी
दोस्तों ने तानो के बारिश करी ॥

दिन निकलते गए
लल्लू जी तड़पते गये ॥

इंतज़ार की घड़ी खत्म हुई
विदेशिओं की टीम आ के जम गयी

लल्लू जी बुलाये गए
अररे, लल्लू जी तो बेहोश हुए ॥

आते ही 'गोड़ सेव दी किंग' चालू किया

फ़िर जन गन मन भी सुना दिया ॥

विदेशिओं ने रास्ट्र गीतों को मान दिया
सभी ने साथ दिया और उठ के सेल्ल्युट किया ॥

लल्लू जी के देश प्रेम से अमरीकी अभिभूत होगये
सवाल कुछ पूछने थे कुछ और ही पूंछे गये

देखते ही देखते लल्लू जी का चयन हो गया
सात समन्दर पार का प्यारों सपना सच हुआ ॥

नये कपडे सिलवाये गये
पासपोर्ट वीसा टिकट बनवाये गये ॥

वोह दिन भी आ गया
एअरपोर्ट पहुंच जहाज पकडा गया ॥

इंतज़ार की घडियां खत्म हुयी
उलटी गिनती चालू हुयी ॥

जहाज गुर्राना चालू हुआ
व्योमसुन्दरी ने सुचना, नास्ता, दारू चालू किया ॥

देखते ही देखते देश दूर होगये समंदर आ गया
लल्लू यानि वो इंजिनीअर ललित प्रशाद सात समंदर पार गया ॥