Friday, December 10, 2010

हिंदी

भाषा  का  ज्ञान , भाषा  का  मान  
देश  धर्म  की  पहली  पहिचान 
समर्द्ध, सम्पन्न, हिंद का सम्मान 
आज अंग्रेजी के समक्ष हतमान
क्या जापान कम उन्नत है?
क्या रूस के स्पुतनिक चाँद पर नहीं पहुँचते?
गुलामी तो चीन ने भी झेली थी 
हमलावरों की ताकत क्या हमने अकेले देखी थी 
लेकिन हर मुल्क में नेहरु गांधी ना हुए 
यानी अंग्रेजी को लादने को साथी ना हुए 
इसलिए चीन, जापान, रूस, मंगोलिस्तान
जर्मनी हो या फ्राँस अपनी भाषा का मान रखते हैं 
दूसरी से परहेज नहीं पर अपनी को ऊपर रखते हैं 
संविधान के बताये वर्ष तो कभी के बीत गये 
अटल के हिंदी शब्द रास्ट्रसंघ में गूंज गये 
हमे भी आज सोचना होगा 

Wednesday, November 24, 2010

bihar ki jeet

दे दी पटकनी लालू राहुल को तुने बिना खडग बिना ढाल
पटना के रन बांकुरों तुमने कर दिया कमाल

कल तक नितीश- मोदी झेलते थे हमले बार बार
राज में ना बिजली ना रक्षा जनता बेकार

जयप्रकाश के पठे बिहार में  जन्मे दो सितारे
 शुशील और नितीश इस धरती के तारे

सामने थी बेकारी, अन्धकार,  और सूखा बाढ़ गरीबी लाचारी
साथ थी हिम्मत, हौसला, संगठन शक्ति और दयानतदारी

पांच वर्ष पहीले अंधकार विरासत में मिला था
सामने समश्याओं का बड़े बोलों का लम्बा सिलसिला था

लड़ते लड़ते निकल गये सरदारों के सरदार हिम्मत ना हार के
 आगयी परिक्षा जनता के दरबार परीक्षक केद्र सरकार के

कहीं राम
कही राहुल
कहीं माया
कहीं लल्लू   
कुरुक्षेत्र सज चूका था
बिहार चुनाव धधक चूका था

हमले हुए, तीर चले आरोप लगे
अपने पराये हुए, दिल में खंजर से लगे

जनता पर विश्वास था कर्म पर था भरोसा
साथ कमल सा कोमल और तीर सा कठोर था

शरद, शिवानन्द, ठाकुर, रविशंकर
शाहनवाज, शुष्मा, लालजी से साथ कर

भीड़ गये बौल हर हर महादेव अल्लाह हो अकबर
सामने लालू राबड़ी, रामविलास, राहुल सोनिया  एक से एक बढ़ कर

काम जीत गया, विश्वाश बढ़ गया
नतीजे आज आये तो नशा सा चढ़ गया

एक दो नही  २०० भी पार होगये
सामने तो तीन चार बीस बाईस रह गये

रन बाकुरो जीत को संभालना साथ निभाना
कमल खिला रहे, तीर पैना रहे जनता की आस पुराना 

Tuesday, September 28, 2010

राम जन्म भूमि विवाद

राम जन्म भूमि विवाद
देश को परतंत्रता की सौगात 
  
३० सितम्बर को क्या होगा? 

कुछ  टीवी पर आयेंगे 
कुछ  अख़बारों पर छाएंगे 
कुछ फ़ना, कुछ शहीद,  
कुछ गुमनामी में सो जायेंगे 

कुछ खोजेंगे अदालती फैसले में खामिया, 
कुछ प्रदेश और कुछ रास्ट्रीय सरकार में,
कुछ नाम लेंगे 'भगवा और हरे' सम्प्रदायों का  
कुछ माननीय जजों को ही खोज डालेंगे  

मुक़दमा आगे बढेगा, 

राम तो आज भी साये में हैं 
कल भी साये में ही पाएंगे 
फर्क नही पड़ता इस राम भक्त को 
राम तो हनुमान के सीने  में सर्वदा सुरक्षित, सन्मानित, 
नित्य सुमिरन पाएंगे 

यह कैसा गाँधी का रामराज 
जिसमे राम सीता के घर भी,
अदालती फैसले से पहिचाने जायेंगे

राम के स्थान भी कब्जा किये जायेंगे 
राम सेवक तो जीतेगा ही 
हम है तैयार 
१५०० इसवी - नहीं - लेकिन 
१९९२ फिर दुहराए जायेंगे 
राम मंदिर कब बनेगा ? 
सीता रसोई में भोग कब लगेगा ?

सुर्यवंश की जितनी पीढ़ी लगी थी एक भागीरथ पाने में 
क्या हमें भी इतनी पीढ़ीओं जीना,
 लड़ना, 
भुगतना पड़ेगा 
रामलल्ला को घर दिलवाने में

Tuesday, May 4, 2010

हार ही जीत का श्रोत..

जिन्दगी जिंदादिली का नाम है
रुकावटें मुसीबतें तो यूँ ही बदनाम है


आती हैं यह सब्र का इम्तहान लेने
आंकने ताकत और होसला तोलने


जो डर गया घबरा गया
या इनसे जी चुरा गया


मर गया जीतेजी मौत की जरुरत उसे नही
जो अड़ गया मैदान ए जंग में वोह हारा नही


पोरस हर के भी जीता था दुनिया जानती है
जीसे गौरो ने डिब्बे से फैंक दिया उसे आज महात्मा जानती है


लिंकन, वाशिंगटन गजनवी इंदिरा की हार कोन नही जानता
संघर्ष इनका जिसने विश्वनेता इन्हें बना दिया


ना थमे ना रुके रणबाँकुरे झुझ गये केसरिया बना पहिरके
ली प्रेरणा, संकल्प जीत का लिया बेपरवाह हार या जीत से


आज इतहास भर गया है इन की कहानिओं से
कल तुम्हारी भी चर्चा इनमे होगी तुम्हारे काम से


मत कर प्रवाह हार की जीत की कर्म कर कर्म कर
कर्म किये जा फल वोह देगा विश्वास कर

हार ही जीत का श्रोत..

Friday, April 30, 2010

छलकती आँखें

मेरी बेगम ने झोंक दी हैं सालन में वो मिर्चें,
निवाला मुँह में रखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,


शादी की ये तस्वीरें बड़ी मुश्किल से ढूँढी हैं,
मैं अब इनको पलटता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,


जमा-पूँजी मैं बिस्तर के सिरहाने रख के सोता था
वहाँ अब हाथ रखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,


मेरी शादी मेरी लग्ज़िश थी या गलती थी वालिद की,
मैं बीवी से जब ये सुनता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं...


जब किसी यार की शादी में दुल्हन को रोते देखता हूँ विदाई पर
अपने यार के आने वाले दुर्दिन सोच आँखे भीग जाती हैं


जब समन्दर के किनारे चोंचे लडाते तोता मैना देखता हूँ मैं
उनका भविष्य सोच फिर से आँखे टपक जाती हैं


मेरे रिश्तेदारों की वोह करती खातिर और ताने मारती अपने को
सुनके देख के यार्रों आँखे पसीज जाती हैं


क्या क्या बताएं तुम्हे इन आँखों का राज
हमारी तो 'मौके' पर ही और उनकी तो 'बेमोके' छलकती जाती हैं

Saturday, April 24, 2010

इंडियन पैसा लीग

 इंडियन पैसा लीग से आई हवा 
मारिसस जा और माल कमा

नाम रखले अपना मोदी या ललित
साथ में जीसके राजे पवार और कितने भ्रमित 

कोई भी रिश्तेदारी निकाल ले
या गाँव का पुराना पड़ोस ही निकाल ले 

कुछ न मिले तो सौतेला ही सही
अपना नही तो दारू वाले का ही
 

सुबह कर बैठक टीम के मालिकों से
दिन में इंटरवियु इनकमटेक्स को दे 

शाम को तो मेच देखेगा
जिनके लिए फिक्स किया उनसे भी वसूलेगा
 
दिनभर फिक्स करे और डुबेगा  नशे में  
रात गुजरेगी स्वप्न सुन्दरियो के आगोश में 

फिरलालच का एक सरुर आएगा
सुनन्दा जैसी सुन्दरी को थरूर लायेगा
 

इंडियन पैसा लीग में जोर और भाग आजमाएगा 
सो सुनार कि एक लुहार कि एक दी वोह भी खायेगा 

लीग के पटेलों पवारों के वफादार को रस नही आएगा
हिल जायेगा देश पूरा थरूर तो थर्रा ही जायेगा 

थरूर गया थर्रा के बड़ी बड़ी पावरों को
पटेलो को मनोहओं को शुक्लों को मलयों को 

देखो ये पैसा लीग कया रंग लाती है
कितनो को गद्दी से उतारती और चढ़ावा चढ़ाती है 

ऐसी लीग से बचना यारों
अगर मारीशस में नही बसना प्यारों

Sunday, April 18, 2010

बगावत -अहसास ए मोहब्बत

हाल ए दिल तुम तो सुना गये
इकरार ए जुर्म अपना दर्ज करा गये
महफ़िल तुम्हारे चिराग ए हुश्न से थी रोशन
बेजार थे कसीदे पढ़ रहे थे हम तुम्हे याद कर कर
तुम चिलमन में छिपे रहे हम यारों में घिरे रहे
तुम क्या समझे हमे इल्म नही
हम तो अपनी तड़प नगमों में पिरोते चले गये
शमा में तुम्हारा अक्श देखते दास्ताँ ए मोहब्बत सुनाते चले गये
आँखें कैसे बगावत करेंगी हमसे हे बेवफा तुम जल्वाफ्रोज़ ही ना हुई
बगावत भी अहसास ए मोहब्बत ही तो है हम तो कितनी बार इसे सहलाते गये

मैंने कब दर्द के ज़ख्मों से शीकायत की है
हाँ मेरा जुर्म है के मैंने मुहब्बत की है
आज फिर देखा है उससे महफ़िल मैं पत्थर बन कर
मैं ने आंखों से नहीं दिलसे बगावत की है
उस को भूल जाने की गलती भी कर नहीं सकती
टूट कर की है तो,सिर्फ मुहब्बत की है

Thursday, April 15, 2010

एक वक्त

किसी बहिन बेटी माँ की आबरू पर जान निसार करने का मादा
किसी को वचन देकर जान देकर भी पूरा करने का वादा
धरती, गौ माँ के लिए प्रान न्योछावर करने का जज्बा
अगर देवी प्रगट ना हो तो शीश चढाने की इच्छा

याद करें उन पृथ्वीराज, शिवाजी गुरुतेगबहादुर,छ्त्रसालों को
कैसे भूल जाएँ आज़ादी की जलती
लक्ष्मी, तांतिया, तिलक, गोखले लालाजी
जैसी मशालों को
वन्दे मातरम के नारे पर
गाँधी के इशारे पर
सुभाष के पुकारे पर
भगत के चिंघाड़े पर
खून खौल जाता था
हर औरत का जेवर उत्तर जाता था
दिल दिवाना- और दिमाग सब भूल जाता था

उन आज़ादी के दिवानो
देश की अस्मत के परवानो का खून ही क्या
पूरा बदन खोल जाता था
बदन ही नहीं पूरा
चमन ही डोल जाता था

यारों -आज भी एक वक्त है
रोटी कपडा और मकान फक्त है

हम दो और हमारे दो के नारे पर
ना बहिन
ना भाई,
ना बाप
ना माई
ना पड़ोस
ना नाती
ना यार
ना खुदाई
सिर्फ खुद और लुगाई

बाकी जज्बात जब्त हैं
किसे देशप्रेम, धर्म परोपकार से इश्क है

खून जुर्म होते देख भी खौलता नही
मुख अस्मतें लुटते देख भी बोलता नही
हाथ दान को उठता नही
पैर देव दर्शन को बढ़ता नहीं
क्योंकी सफेदपोश सोच के उठता, करता,बोलता, है
अपनी नोकरी, अपनी छोकरी अपनी टोकरी को बचाने को
दुसरे को बर्बाद करता,
अपनों से किनारा करता
ना जाने किस किस के पैर पड़ता है
ऐसा सफ़ेदपोश आज हर गलीकूंचे में डोलता-मिलता-दिखता है

Sunday, April 11, 2010

यादे

दर्द ए दिल इसका क्या कहना
कितने जख्म यारों ने दिए क्या गिनना
सिर्फ पुराने तजुर्बे देते हैं नसीहत
इस लिए पड़ती हैं यादे संजोना

हर वक्त नही मिलते तुमसे वफादार
यह यादें करती हैं वफा,जब जख्मी हो सीना
जख्म भी धरोहर हैं उन जालिम की
जब मिलें तो सुनादेंगे उन्हें दास्ताँ ए हसीना

Friday, April 9, 2010

कर्म का मर्म

जैसा करेगा
वैसा भरेगा
सोएगा तो खोएगा
जागेगा तो पायेगा
कर्म करेगा फल पायेगा
प्यार करेगा प्यार ही पायेगा
दुनिया छोटी हो गयी
हिम्मत कर पार उतर जायेगा
कल करने को टालेगा
फ़िर कैसे पा लेगा
साथ में तेरे बहुत कुछ आया था
जाते बहुत साथ बांधेगा
यह मानव जनम भाग्य से पाया
प्रभु भजन परोपकार से इसे सफल बना लेगा

Wednesday, April 7, 2010

लाल झंडा लाल निसान

लाल हाथ लाल खून से रंगे
पुलिस का हो चाहे जनता हत्थे चढ़े

आज ७६ वर्ष में सेकड़ों मरे
देश के कोने कोने में कितने इनके हत्थे चढ़े ?

हिटलर भी उनके हाथ चढ़ गया`
१९६२ में चाचा नेहरु को डस गया

बंगाल की तरक्की वोह खा गया
देखो कितनी तेजी से आसमा पर छा गया

कभी इंदिरा कभी अटल कभी प्रचंड दहल
बंगाल से शुरू केरल पर रहा टहल

देश की आज़ादी में देशद्रोह की मीसाल
देश की तरक्की का विनाश और काल

नक्सल,फारवर्ड, वाम, माओवादी मार्किस्ट आदि
सभी अंदर से एक,दिखते अलग जैसे खांसी बुखार मियादी

प्रेम की भाषा दलाई पुकारते रह गये
हिंदी चीनी भाई भाई सुनाते नेहरु चले गये

इनका तो बस एक ही इलाज़ है
फौज की तैनाती और इनका पूर्ण विनाश है

सरकार में इच्छाशक्ति नही जनता में एका नही
वोटों की राजनीती इनको मरने देती नही

आज हमे ही आगे आना होगा
दे हथियार आदिवासी को इनसे टकराना होगा

जिनकी पैरवी का दावा यह करते है उन्हें इनसे बचाना होगा
वोह जग गये तो यह भाग गए इनको बतलाना होगा


Sunday, April 4, 2010

कब करेंगे प्यार


जिन्दगी उसकी जिसका यार
आज नहीं तो कब करेंगे प्यार
जैसे आज नगद कल उधर
प्यार के बिना जिन्दगी बैकार


बिल्कुल ठीक कहा मेरे यार
मारवाडी हम, देते नकद, करते नही उधार
बाहर झांक के देखा तो बिक रहा था प्यार
हम भी आज करेंगे तुमसे प्यार का इकरार
क्योंकी हम प्यार के मसयिया जीन्दगी भर बांटते प्यार

तमाम उम्र गुज़ारी फकीरी में कि खुदा मिलेगा,
जब मिला खुदा तो पूछते हैं कि तू शै क्या है.

फ़साना`ए जीन्दगी येही तो करता है
खुदा सामने तो मासुक की इबादत करता है
फकीरी मुयस्सर हुयी थी किसी की तड़प और duri me
जब मुलाकात हो गयी जान ए तमन्ना से
तो खुदा से उसका नाम पूछता है


Saturday, April 3, 2010

अभिशापित श्रापित जीन्दगी


गरीबी एक अभिशाप
जीन्दगी का सब से बड़ा संताप

बाप बड़ा ना भैया
सबसे बड़ा रूपया
पैसे की छनक पर गौरी की मुस्कान न्योछावर
दौलत की धमक पर झुकते करते सिजदा सर झुका कर

एक तर्फफ़ रईस का कुत्ता भी गद्दों पर सोता है
एक तरफ मज़दूर का बच्चा स्तनपान को भी रोता है

नहीं उतरता दूध उस गरीब अबला की छाती से
नहीं खायी रोटी तीन दिन बीत गए बिना दिया बाती के

यह अभिशापित श्रापित जीन्दगी

कल सुबह होगी नयी फसल आएगी
इस आशा में इस निर्धन माँ की रात बीत जाएगी

नयी सुबह तो दरवाजे पर साहूकार खड़ा होगा
घर का सदस्य बैल बा बा कर रहा होगा

साहुकार तो रस्सा खोल लेगया
खेती का अब क्या होगा

यह कैसी अभिशापित श्रापित जीन्दगी


कैसी गुलामी कैसा शोषण
दो रोटी के वास्ते बिक गया यह रमणी का गोर तन

कैसा मौन कैसा बोल, गरीबी के तराजू में तुल गया मन
धिक्कारते पुर्वजन्मो के पापों को इस श्रापित अभिशापित दिन

ऐसी है करोड़ों भारतियों की जीन्दगी ......................

बेक़सूर बारिश

बारिश बिचारी का क्या कसूर
वोह तो है हमेशा मजबूर

उसका तो काम ही है बरसना भिगोना
कहीं सिर्फ पल्लू कहीं पूरा सराबोर

मिटटी भी बेचारी क्या करे
उस ने तो बारीश की आहट पाते ही होता है महकना

बेदर्द यह आँखे तरसती दीदार को किसी को
कभी कभी काम कर जाती हैं बारीश सा बरसाना

बारिश तो माशूक के सामने रख लेती है इज्ज़त
आंसुओं को ढक बूंदोंमें समेट लेती हें

कर मत नफरत तू बारिश से औ निशीत
यह तो आशिको की कल्पना, राहत और सहेली है

Thursday, April 1, 2010

मानव -प्रभु का वरदान

मानव धर्म में हमे सब कुछ लेना
चाँद देखना सूरज बनना और सीतारों से बाते करना
अपने पराये की बात नहीं पुरे विश्व को दिल में रखना

स्वार्थ परमार्थ की लम्बी कहानी
दोनो के बीच में बड़ी छोटी सी गिनती जानी

माँ को बेटे से बेटे को माँ से स्वार्थ की माँ होती क्या कोई सीमा होती है
लेकिन माँ के जीन्दा रहने तक और मरने के बाद भी सदगति बेटे से ही होती है

सन्यासी साधू को चेले से क्या आस होती है
फिरभी गुरु परम्परा गुरु दीवस गुरु दक्षिणा होती है

मानव धर्म तो स्वार्थ का नाम है
धर्म करता पुन्य कमाता उसे कहते इंसान हैं

राम रहीम रविदास कबीर तुलसी सूर रसखान
बखान गए महिमा नर नारायण की और परिभाषा-ए-शेतान
इसलिए इंसान पहीले फीर सार्थक जीवन यह प्रभु का वरदान

Wednesday, March 31, 2010

मन की दौड़ .....................

पुरे एक माह के पश्चात्
फीर वापिस बच्चों के पास

दिल्ली मथुरा की चिलचिलाती गर्मी से निजात
और मैसूर की मधुर वादी में पुनह वास

दिल के कीतने टुकड़े होते हैं
एक उस के एक तुम्हारे करीब होते हैं

मथुरा में राधावल्लभ बिहारी जी द्वारकाधीश के दर्शन
गुरुशरनानंद जी जैसे निश्चल आत्माओं में विचरण

जीवन का एक विकट, अटल सफल परिक्षण
जीसे सोच सोच प्रफुल्लित होता यह मन

लेकिन घर से दूरनन्हे मुन्ने बच्चों की मुश्कान
अपनी छत, गृहलक्ष्मी द्वारा चाय के प्याले पर उतरती थकान

पिछले २० वर्षो के मित्रो साथिओं की खट्टी मीठी यादें फील्म सी दिखती जाती हैं
जीवन के इस पड़ाव में पुकारती बुलाती पुन :पुन: विचलित करती जाती हैं

यह मन का पवनवेग का एरावत खीच लाता है
दिलासे देता और बहाने बनाता घर पहुँच ही जाता है

हर बार लगती है यह अंतिम मथुरा यात्रा
लेकिन मानव धर्म,
मेरा करम
गोरक्षा में बढ़ते कदम
संकल्पों को पूरा करने का भरम
प्रेरित करता उठाता यह निश्छल ठिठुरा तन
और बढ़ चलते है कदम
कर्मस्थली की और दाब के निष्ठुर मन



Monday, March 29, 2010

भविष्य स्वप्न

भविष्य स्वप्न भूत मार्गदर्शक वर्तमान वास्तविकता
जो भूत में विचरता वोह इंसान स्वप्नों में जीता

आत्मविश्वास की कमी याने भविष्य की क्षति
प्रभु में विश्वाश भूत की हार की याद सफलता को चुनती

मनुष्य भगवान तो नही यहाँ तो उसे भी दायरों में जीना पड़ा
शंघर्ष उसने किया आपदाओं को जीता और भगवान् बना

संघर्ष तेरी नियति संघर्ष कर संघर्ष कर कामयाबी सामने खड़ी
तू पस्त हुआ, संघर्ष से मुह मोड़ा, फीर तेरी किस को पड़ी

दिल ए दर्द ए नादाँ का क्या कहना

तेरा दर्द चाट गया मेरा बदन
कुछ ज़िंदगी ने पी लिया अन्दर तलक मुझे
..........
दिल ए दर्द ए नादाँ का क्या कहना
कुछ पी गया मेरा दर्द और तेरा सीना

जींदगी का सफ़र और उस के यह खुबसूरत पड़ाव
कुछ पल हमारे साथ कुछ पल अपने साथ बिताओ

यादों के झरोखे से जब झांकोगे
हमारी खुशबु आएगी हमे करीब पाओ

वक्त कि हर् शह गुलाम


वक्त कि हर् शह गुलाम, हर कोयी इसे करता सलाम
मस्ती मे भुल जाता अपनो को, करता दुजो का जीना हराम

वक्त का मारा ठोकर खाता, मिलता नही उसे आराम
दुजे का किया वो भुगतता, दोषी सारा मुक्कदर और राम

नानक दुखिया सब सन्सार, दुख कट्ते मिल जुल हरबार
जब तुम रोते कोयी साथ ना रोता, ह्न्सते पुर सन्सार

गरीब की जौरु सब की भाभी, रइस का कुत्ता बिस्कुट खाता
इस दुनिया की रीत येहि, मरने वाले के साथ कोयी नही जाता

दिन के बाद मे रात अगर आती, तो रात के बाद दिन भी आता
फिर येह इन्सान अपने सुख के पल क्यो नही बाट बिताता

कह गये ग्यानि सारे,दुख बाट्ने वाले को सुख हि सुख मिल
ता
कर परवाह होगी परवाह ,येह सत्य मानव क्यो नही अपनाता

Saturday, March 27, 2010

माँ बाप मजधार में

पढ़ लिखकर बाजार में लेते फिरता सीख
घर चलाता अनपढ़, ढोता माल बोझा खीच

मांग काढ जुल्फ बना ढूंढे नोकरी को
घर पर गांठे रोब, तोड़े रोटियां,पाठ पढ़ावे सबको

नोकरी अगर मिल जाये तो भी किस काम को
गाँव छोड़ शहर को भागे ठोकर मारे माँ बाप को

कबीरा काम का ना काज का पढ़ा लिखा
इसको को तो चाहिए मेज कुर्सी चाहे किस्तों पर लेआ

नकल मार के पास हुआ और रिश्वत दे के नोकर
चमचा बन के तरक्की पाई मेमसाब का बन कर

चांस लग गया तो विदेश गया दुल्हनिया को छोड़ कर
गिट पिट कर मेम पटाई भुला अपना गाँव घर

कबीरा इस संसार में तू किस पर भरोसा करता सोच सोच कर
यह भी पढ़ लिखने की रीत है बढ़िया तू तो बुनकरका बुनकर

Tuesday, March 23, 2010

परमारथ का फिलसफा

बहुत हो गया किसी को देख कर दिल का धडकना
पीछे मुड कर देखो क्या कहो दिया और कितना

अभी कुछ बिछड़ा नही कुछ खोया नहीं
जीन्दगी का एक पल भी अगर स्वाति की बूंद तो मोती की कमी नहीं

सफलता कामयाबी हर जीव के लिए अलग होती है
किसी को एक बोतल मिल जाये उसकी जीन्दगी धन्य होती है

कोई एक मधुर मुस्कान पर जीवन न्योछावर करता है
कोई दुसरे की तरक्की देख दुखी और हार पर खुश होता है

गाँधी अफ्रीका में पिटके भी नई उछई पा गये
अहिंसा को हिंसा से लड़ा देश आज़ाद करा गये

देश याद करेगा जे.पी, लोहिया को जिन्होंने देश को दिशा दी
भूल नही सकते दीनदयाल, श्यामाप्रशाद को जिन्होंने एकात्ममानववाद की रचना की
भूलेंगे नहीं शेरपा को जिसने हिमालय विजय किया
धरा का सीना चीरता किसान किसीसे कम नही जो देश का पेट भर रहा

गुरु विनोद बिस्सा कम नही जो हमे सिक्षा दे रहे
रोज नए संवाद पैदा कर हमे आगे बढ़ा रहे

अंत में हर इंसान में देव दानव निवास करता है
हर औरत में माँ,बेटी,बहिन,प्रयसी,सीता , केकई का रूप होता है

मर्यादापुरषोतम राम ने बालीको बेकसूर स्वार्थवस मारा था
धर्मराज युधिस्तर ने भी अस्वथामा हथो - नरो व कुंजरा गुरुवध को उचारा था

क्या एक भी इंच धरती ऐसी है जहाँ कोई मरा नही
क्या ऐसा एक भी इंसान है जिसने चोरी करी नही

इस लिए जहाँ भी मौका पाओ
परमारथ का लुत्फ़ उठाओ -लुत्फ़ उठाओ ........................
--
डॉ. श्रीकृष्ण मितल

Sunday, March 21, 2010

अभिलाषा

बहुत मैं ने मंदिर धोके.
पीर पैगम्बर ओझे देखे

तीरथ नदिओं में स्नान किया,
अभिलाषा बतलाई और सवाल किया

मुझे अजर कर दो अमर कर दो
सब ने बतलाया`हाथ जोड़ के दो


पूरी होगी अभिलाषा, मार्ग बताया यह वरदान दिया
आने वाली नस्लें याद करें की इस धरा पर कोई हुआ

तुम्हे अमर होने की अभिलाषा तो सिर्फ एक बहाना है
मृत्यू अटल है मिलनी सबको, जिसको तो आना ही आना है

पूरी करनी अभिलाषा तो ,दीन दुखी का दर्द दूर भागना है
छोड़ मजहबपरस्ती- कर सेवा- जिससे भगवान को पाना है

जन्नत को नर्क बनाने वालों पर दावानल बन छा जाना है
धधको अग्नि दावानल जैसे तुम्हे कुछ कर के दिखाना है

जिनका दिल साफ़ नही और अग्नि सा जो जल धधक रहे
पहिचान उन देश द्रोहिओं को तुमने उन्हे अग्निकुण्ड में डुबाना है

धरा पर संघर्ष करवाने वालों को नंगा कर प्रेमपथ उनसे ही बनवाना है
आज धर्म के ठेकेदारों ने कहर ढाया उन्हें राह पर लाना है

तुम तो अमर हो जाओगे पर उन्हें इंसान बनाना है
बढे चलो मुड के ना देखो तुम्हे वीर गति पाना है

पूरा देश तुझे निहारे तू तो अमर होगया
यह मिटटी का चोला रहे ना रहे तेरा नाम तो सभी ने माना है

राम रहीम गोतम ना रहे पर क्या उनकी मौत हो गयी?
कर्म करे तू वैसे, फ़िर, तेरी अमर होने की अभिलाषा तो पूरी होगयी

डॉ. श्रीकृष्ण मित्तल

Saturday, March 20, 2010

प्राणी धर्म

प्राणी धर्म
वोह मुख क्या पाक जो सिर्फ राम रहीम का जप करे
या वोह हाथ जो मैल उठाता,लेकिन दूसरों की मदद करे .

कहते हैं गिलहेरी को राम ने उठाया था
उसे बड़े बड़े तपसियों से भी ऊँचा बताया था

मरा मरा जप के रत्नाकर बाल्मीकि बन गये
प्रकांडपंडित तिर्कालदर्शी त्रिलोकविजेता एक दिन लद गये

सिकंदर खाली हाथ आया था खाली हाथ ही गया
लेकिन हार कर भी पोरस अपना नाम अमर कर गया

क्या हिंदु क्या मुस्लिम क्या करुं धर्मो की बात
धर्म तो सारे प्रेम सिखाते पर हम फैलाये उत्पाद.

मानव, मानव के काम न आये ये तो नादानी है
बेअदबी,
इर्षा
मक्कारी,
नमकहरामी
गरूर,
शरूर,
बेइमानी,
बदकारी
का जीना,दुश्वारी और बेमानी है

इस मानव जीवन की बस एक कहानी है
कर भला हो भला,जो मान ले,वो ही प्राणी है
--
डॉ. श्रीकृष्ण मितल
.

Thursday, March 4, 2010

होली के हुल्लड

दिल तुम्हारा रहे जवान
और खेलो होली राधाओं से
चले शेर और मीठी जुबान
हम तुम्हारे आशिक
होली पर करते तुम्हे प्रणाम
आया जाओ मैसूर खेलेगे होली
भर के बाल्टी और पिचकारी बेजुबान
लाना भर के झोला रंग गुलाल मिठाई
मिलेगी भोजाई हमारे से .
भांग के नशे में, रंगों के अँधेरे में
कोन किसे पहिचानेगा
कोन किसे पुकारे गा
जो सामने आगयी उसे ही रंग डालेगा
भौजी किसे बीबी किसे,
आज तो हर गोपी भोजाई नज़र आती है
गली में निकलो तो सही
रंग की दुकान पर
हुल्लाडों की भीड़ नज़र आती है
चला रहे नैनों के बाण -
हाथ में पिचकारी तान
पुरे साल की जवानी आज ही तो रंग लाती है
छुपे के तान फिर देख कैसे गोपी बिना रंगे निकल जाती है