पढ़ लिखकर बाजार में लेते फिरता सीख
घर चलाता अनपढ़, ढोता माल बोझा खीच
मांग काढ जुल्फ बना ढूंढे नोकरी को
घर पर गांठे रोब, तोड़े रोटियां,पाठ पढ़ावे सबको
नोकरी अगर मिल जाये तो भी किस काम को
गाँव छोड़ शहर को भागे ठोकर मारे माँ बाप को
कबीरा काम का ना काज का पढ़ा लिखा
इसको को तो चाहिए मेज कुर्सी चाहे किस्तों पर लेआ
नकल मार के पास हुआ और रिश्वत दे के नोकर
चमचा बन के तरक्की पाई मेमसाब का बन कर
चांस लग गया तो विदेश गया दुल्हनिया को छोड़ कर
गिट पिट कर मेम पटाई भुला अपना गाँव घर
कबीरा इस संसार में तू किस पर भरोसा करता सोच सोच कर
यह भी पढ़ लिखने की रीत है बढ़िया तू तो बुनकरका बुनकर
Saturday, March 27, 2010
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