Sunday, March 21, 2010

अभिलाषा

बहुत मैं ने मंदिर धोके.
पीर पैगम्बर ओझे देखे

तीरथ नदिओं में स्नान किया,
अभिलाषा बतलाई और सवाल किया

मुझे अजर कर दो अमर कर दो
सब ने बतलाया`हाथ जोड़ के दो


पूरी होगी अभिलाषा, मार्ग बताया यह वरदान दिया
आने वाली नस्लें याद करें की इस धरा पर कोई हुआ

तुम्हे अमर होने की अभिलाषा तो सिर्फ एक बहाना है
मृत्यू अटल है मिलनी सबको, जिसको तो आना ही आना है

पूरी करनी अभिलाषा तो ,दीन दुखी का दर्द दूर भागना है
छोड़ मजहबपरस्ती- कर सेवा- जिससे भगवान को पाना है

जन्नत को नर्क बनाने वालों पर दावानल बन छा जाना है
धधको अग्नि दावानल जैसे तुम्हे कुछ कर के दिखाना है

जिनका दिल साफ़ नही और अग्नि सा जो जल धधक रहे
पहिचान उन देश द्रोहिओं को तुमने उन्हे अग्निकुण्ड में डुबाना है

धरा पर संघर्ष करवाने वालों को नंगा कर प्रेमपथ उनसे ही बनवाना है
आज धर्म के ठेकेदारों ने कहर ढाया उन्हें राह पर लाना है

तुम तो अमर हो जाओगे पर उन्हें इंसान बनाना है
बढे चलो मुड के ना देखो तुम्हे वीर गति पाना है

पूरा देश तुझे निहारे तू तो अमर होगया
यह मिटटी का चोला रहे ना रहे तेरा नाम तो सभी ने माना है

राम रहीम गोतम ना रहे पर क्या उनकी मौत हो गयी?
कर्म करे तू वैसे, फ़िर, तेरी अमर होने की अभिलाषा तो पूरी होगयी

डॉ. श्रीकृष्ण मित्तल

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