Saturday, April 3, 2010

अभिशापित श्रापित जीन्दगी


गरीबी एक अभिशाप
जीन्दगी का सब से बड़ा संताप

बाप बड़ा ना भैया
सबसे बड़ा रूपया
पैसे की छनक पर गौरी की मुस्कान न्योछावर
दौलत की धमक पर झुकते करते सिजदा सर झुका कर

एक तर्फफ़ रईस का कुत्ता भी गद्दों पर सोता है
एक तरफ मज़दूर का बच्चा स्तनपान को भी रोता है

नहीं उतरता दूध उस गरीब अबला की छाती से
नहीं खायी रोटी तीन दिन बीत गए बिना दिया बाती के

यह अभिशापित श्रापित जीन्दगी

कल सुबह होगी नयी फसल आएगी
इस आशा में इस निर्धन माँ की रात बीत जाएगी

नयी सुबह तो दरवाजे पर साहूकार खड़ा होगा
घर का सदस्य बैल बा बा कर रहा होगा

साहुकार तो रस्सा खोल लेगया
खेती का अब क्या होगा

यह कैसी अभिशापित श्रापित जीन्दगी


कैसी गुलामी कैसा शोषण
दो रोटी के वास्ते बिक गया यह रमणी का गोर तन

कैसा मौन कैसा बोल, गरीबी के तराजू में तुल गया मन
धिक्कारते पुर्वजन्मो के पापों को इस श्रापित अभिशापित दिन

ऐसी है करोड़ों भारतियों की जीन्दगी ......................

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