मानव धर्म में हमे सब कुछ लेना
चाँद देखना सूरज बनना और सीतारों से बाते करना
अपने पराये की बात नहीं पुरे विश्व को दिल में रखना
स्वार्थ परमार्थ की लम्बी कहानी
दोनो के बीच में बड़ी छोटी सी गिनती जानी
माँ को बेटे से बेटे को माँ से स्वार्थ की माँ होती क्या कोई सीमा होती है
लेकिन माँ के जीन्दा रहने तक और मरने के बाद भी सदगति बेटे से ही होती है
सन्यासी साधू को चेले से क्या आस होती है
फिरभी गुरु परम्परा गुरु दीवस गुरु दक्षिणा होती है
मानव धर्म तो स्वार्थ का नाम है
धर्म करता पुन्य कमाता उसे कहते इंसान हैं
राम रहीम रविदास कबीर तुलसी सूर रसखान
बखान गए महिमा नर नारायण की और परिभाषा-ए-शेतान
इसलिए इंसान पहीले फीर सार्थक जीवन यह प्रभु का वरदान
Thursday, April 1, 2010
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