अपनी मुफलिसी के डर से, मैं घर ही नहीं गया अपने ।
बहन ने फेंक दी होगी राखी, मेरा इंतज़ार करते करते
मुफलिसी नहीं यह तो बहाना था
तो भाभी के साथ सुसराल जाना था
बहिन मिलती तो खर्च हुआ होता
सुसराल में तो स्वागत हुआ होगा
बहिन तो इंतज़ार में सूख आधी हो चुकी
तुझे किसने समझया की वोह राखी फैंक चुकी
में एक बार भाई बहिन का त्यौहार आता है
मुफलिसी का बहानाकर बहिन को इंतजार कराता है
फेकी नहीं किसी गधे को बाँध दी होगी राखी
अपसगुन कैसे करेगी फैंक के बहिन,
.................भाई का वरदान यह राखी
Saturday, August 16, 2008
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1 comment:
excellent sir....bahut hi sahi baat kaha hai aapne is kavita ke dwara.....
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