ख्वाब और ख्यालों की मलिका हम तुम्हारे गुलाम
हर ल्ह्मा हर पल हम तुम्हे याद करते हैं
खुशियाँ बाटने से बढती असूल जमाने का
गम तो अकेले ही सहने पड़ते हैं
अपनों से शिकवा की बारिश की खबर नहीं दी
बंद कमरे में गैरों के साथ क्यों आप बंद होते है
तुम्हे दिखाने को हंसते रहे हम
छिपाते दिल के आंसू और गम
जब तुम सामने तो हम बाग़ बाग़ होते है
हर रात के बाद दिन आता है
चाँद छिपता सूरज निकल जाता है
दिल के जख्म भरने को
ग़मगीन के भी उत्सव होते है
ख्वाब और ख्यालों की मलिका हम तुम्हारे गुलाम
हर ल्ह्मा हर पल हम तुम्हे याद करते हैं
Tuesday, August 5, 2008
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