कान्हा खेलत ब्रिज मैं ग्वालन संग
घुसत गोपियन के घर ढुडन माखन ॥
गोपी तरसत छुप झाँकत, कब आवेंगे नन्दलाल
देख कान्हा, दर्शन पात, होजावे निहाल ॥
लेत बलिआं, पीछे भागत, पकड़वे को नटवरलाल
अंखियन नीर बहावत, कमलपद पखारत, जपे गोपाल ॥
ये नटखट,लीला करत,गोपियन को खिजावत,करे धमाल
छाछ के लोटे पे,त्रिभंगी को नचावे,देखो गोपियन को कमाल ॥
मनभाव दुसरो,काम दूसरो,पकडे श्याम को, डाले लाल
सून स्यानी, जो इसे ध्यावे,वोह तो,निहाल और खुशहाल ॥
Friday, August 29, 2008
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