इन बदनसीबों पर क्यों रोते हो।
क्यो गेंडे की खाल को धोते हो।।
नही परवाह इन आजके मसीहाओं को
ना कविता की ना तुम्हारी।
आज चले गए नीरज,
क्यों निराला दिनकर को घसीटते रोते हो।
जब चन्द्र बरदाई भी बिक गया एक मुट्ठी नमक के ताने पर
इन की क्या बिसात,चलो
सुने तुम्हारी भी।
कुछ कट गई कुछ कट जाएगी
क्यों दुनिया का ठेका लेते हो।
क्यो गेंडे की खाल को धोते हो।।
नही परवाह इन आजके मसीहाओं को
ना कविता की ना तुम्हारी।
आज चले गए नीरज,
क्यों निराला दिनकर को घसीटते रोते हो।
जब चन्द्र बरदाई भी बिक गया एक मुट्ठी नमक के ताने पर
इन की क्या बिसात,चलो
सुने तुम्हारी भी।
कुछ कट गई कुछ कट जाएगी
क्यों दुनिया का ठेका लेते हो।
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