मेरी बेगम ने झोंक दी हैं सालन में वो मिर्चें,
निवाला मुँह में रखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,
शादी की ये तस्वीरें बड़ी मुश्किल से ढूँढी हैं,
मैं अब इनको पलटता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,
जमा-पूँजी मैं बिस्तर के सिरहाने रख के सोता था
वहाँ अब हाथ रखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,
मेरी शादी मेरी लग्ज़िश थी या गलती थी वालिद की,
मैं बीवी से जब ये सुनता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं...
जब किसी यार की शादी में दुल्हन को रोते देखता हूँ विदाई पर
अपने यार के आने वाले दुर्दिन सोच आँखे भीग जाती हैं
जब समन्दर के किनारे चोंचे लडाते तोता मैना देखता हूँ मैं
उनका भविष्य सोच फिर से आँखे टपक जाती हैं
मेरे रिश्तेदारों की वोह करती खातिर और ताने मारती अपने को
सुनके देख के यार्रों आँखे पसीज जाती हैं
क्या क्या बताएं तुम्हे इन आँखों का राज
हमारी तो 'मौके' पर ही और उनकी तो 'बेमोके' छलकती जाती हैं
Friday, April 30, 2010
Saturday, April 24, 2010
इंडियन पैसा लीग
इंडियन पैसा लीग से आई हवा
नाम रखले अपना मोदी या ललित
साथ में जीसके राजे पवार और कितने भ्रमित
कोई भी रिश्तेदारी निकाल ले
या गाँव का पुराना पड़ोस ही निकाल ले
कुछ न मिले तो सौतेला ही सही
अपना नही तो दारू वाले का ही
सुबह कर बैठक टीम के मालिकों से
दिन में इंटरवियु इनकमटेक्स को दे
शाम को तो मेच देखेगा
जिनके लिए फिक्स किया उनसे भी वसूलेगा
फिरलालच का एक सरुर आएगा
सुनन्दा जैसी सुन्दरी को थरूर लायेगा
इंडियन पैसा लीग में जोर और भाग आजमाएगा
लीग के पटेलों पवारों के वफादार को रस नही आएगा
हिल जायेगा देश पूरा थरूर तो थर्रा ही जायेगा
थरूर गया थर्रा के बड़ी बड़ी पावरों को
पटेलो को मनोहओं को शुक्लों को मलयों को
देखो ये पैसा लीग कया रंग लाती है
कितनो को गद्दी से उतारती और चढ़ावा चढ़ाती है
ऐसी लीग से बचना यारों
अगर मारीशस में नही बसना प्यारों
मारिसस जा और माल कमा
नाम रखले अपना मोदी या ललित
साथ में जीसके राजे पवार और कितने भ्रमित
कोई भी रिश्तेदारी निकाल ले
या गाँव का पुराना पड़ोस ही निकाल ले
कुछ न मिले तो सौतेला ही सही
अपना नही तो दारू वाले का ही
सुबह कर बैठक टीम के मालिकों से
दिन में इंटरवियु इनकमटेक्स को दे
शाम को तो मेच देखेगा
जिनके लिए फिक्स किया उनसे भी वसूलेगा
दिनभर फिक्स करे और डुबेगा नशे में
रात गुजरेगी स्वप्न सुन्दरियो के आगोश में
फिरलालच का एक सरुर आएगा
सुनन्दा जैसी सुन्दरी को थरूर लायेगा
इंडियन पैसा लीग में जोर और भाग आजमाएगा
सो सुनार कि एक लुहार कि एक दी वोह भी खायेगा
लीग के पटेलों पवारों के वफादार को रस नही आएगा
हिल जायेगा देश पूरा थरूर तो थर्रा ही जायेगा
थरूर गया थर्रा के बड़ी बड़ी पावरों को
पटेलो को मनोहओं को शुक्लों को मलयों को
देखो ये पैसा लीग कया रंग लाती है
कितनो को गद्दी से उतारती और चढ़ावा चढ़ाती है
ऐसी लीग से बचना यारों
अगर मारीशस में नही बसना प्यारों
Sunday, April 18, 2010
बगावत -अहसास ए मोहब्बत
हाल ए दिल तुम तो सुना गये
इकरार ए जुर्म अपना दर्ज करा गये
महफ़िल तुम्हारे चिराग ए हुश्न से थी रोशन
बेजार थे कसीदे पढ़ रहे थे हम तुम्हे याद कर कर
तुम चिलमन में छिपे रहे हम यारों में घिरे रहे
तुम क्या समझे हमे इल्म नही
हम तो अपनी तड़प नगमों में पिरोते चले गये
शमा में तुम्हारा अक्श देखते दास्ताँ ए मोहब्बत सुनाते चले गये
आँखें कैसे बगावत करेंगी हमसे हे बेवफा तुम जल्वाफ्रोज़ ही ना हुई
बगावत भी अहसास ए मोहब्बत ही तो है हम तो कितनी बार इसे सहलाते गये
मैंने कब दर्द के ज़ख्मों से शीकायत की है
हाँ मेरा जुर्म है के मैंने मुहब्बत की है
आज फिर देखा है उससे महफ़िल मैं पत्थर बन कर
मैं ने आंखों से नहीं दिलसे बगावत की है
उस को भूल जाने की गलती भी कर नहीं सकती
टूट कर की है तो,सिर्फ मुहब्बत की है
Thursday, April 15, 2010
एक वक्त
किसी बहिन बेटी माँ की आबरू पर जान निसार करने का मादा
किसी को वचन देकर जान देकर भी पूरा करने का वादा
धरती, गौ माँ के लिए प्रान न्योछावर करने का जज्बा
अगर देवी प्रगट ना हो तो शीश चढाने की इच्छा
याद करें उन पृथ्वीराज, शिवाजी गुरुतेगबहादुर,छ्त्रसालों को
कैसे भूल जाएँ आज़ादी की जलती
लक्ष्मी, तांतिया, तिलक, गोखले लालाजी
जैसी मशालों को
वन्दे मातरम के नारे पर
गाँधी के इशारे पर
सुभाष के पुकारे पर
भगत के चिंघाड़े पर
खून खौल जाता था
हर औरत का जेवर उत्तर जाता था
दिल दिवाना- और दिमाग सब भूल जाता था
उन आज़ादी के दिवानो
देश की अस्मत के परवानो का खून ही क्या
पूरा बदन खोल जाता था
बदन ही नहीं पूरा
चमन ही डोल जाता था
यारों -आज भी एक वक्त है
रोटी कपडा और मकान फक्त है
हम दो और हमारे दो के नारे पर
ना बहिन
ना भाई,
ना बाप
ना माई
ना पड़ोस
ना नाती
ना यार
ना खुदाई
सिर्फ खुद और लुगाई
बाकी जज्बात जब्त हैं
किसे देशप्रेम, धर्म परोपकार से इश्क है
खून जुर्म होते देख भी खौलता नही
मुख अस्मतें लुटते देख भी बोलता नही
हाथ दान को उठता नही
पैर देव दर्शन को बढ़ता नहीं
क्योंकी सफेदपोश सोच के उठता, करता,बोलता, है
अपनी नोकरी, अपनी छोकरी अपनी टोकरी को बचाने को
दुसरे को बर्बाद करता,
अपनों से किनारा करता
ना जाने किस किस के पैर पड़ता है
ऐसा सफ़ेदपोश आज हर गलीकूंचे में डोलता-मिलता-दिखता है
किसी को वचन देकर जान देकर भी पूरा करने का वादा
धरती, गौ माँ के लिए प्रान न्योछावर करने का जज्बा
अगर देवी प्रगट ना हो तो शीश चढाने की इच्छा
याद करें उन पृथ्वीराज, शिवाजी गुरुतेगबहादुर,छ्त्रसालों को
कैसे भूल जाएँ आज़ादी की जलती
लक्ष्मी, तांतिया, तिलक, गोखले लालाजी
जैसी मशालों को
वन्दे मातरम के नारे पर
गाँधी के इशारे पर
सुभाष के पुकारे पर
भगत के चिंघाड़े पर
खून खौल जाता था
हर औरत का जेवर उत्तर जाता था
दिल दिवाना- और दिमाग सब भूल जाता था
उन आज़ादी के दिवानो
देश की अस्मत के परवानो का खून ही क्या
पूरा बदन खोल जाता था
बदन ही नहीं पूरा
चमन ही डोल जाता था
यारों -आज भी एक वक्त है
रोटी कपडा और मकान फक्त है
हम दो और हमारे दो के नारे पर
ना बहिन
ना भाई,
ना बाप
ना माई
ना पड़ोस
ना नाती
ना यार
ना खुदाई
सिर्फ खुद और लुगाई
बाकी जज्बात जब्त हैं
किसे देशप्रेम, धर्म परोपकार से इश्क है
खून जुर्म होते देख भी खौलता नही
मुख अस्मतें लुटते देख भी बोलता नही
हाथ दान को उठता नही
पैर देव दर्शन को बढ़ता नहीं
क्योंकी सफेदपोश सोच के उठता, करता,बोलता, है
अपनी नोकरी, अपनी छोकरी अपनी टोकरी को बचाने को
दुसरे को बर्बाद करता,
अपनों से किनारा करता
ना जाने किस किस के पैर पड़ता है
ऐसा सफ़ेदपोश आज हर गलीकूंचे में डोलता-मिलता-दिखता है
Sunday, April 11, 2010
यादे
दर्द ए दिल इसका क्या कहना
कितने जख्म यारों ने दिए क्या गिनना
सिर्फ पुराने तजुर्बे देते हैं नसीहत
इस लिए पड़ती हैं यादे संजोना
हर वक्त नही मिलते तुमसे वफादार
यह यादें करती हैं वफा,जब जख्मी हो सीना
जख्म भी धरोहर हैं उन जालिम की
जब मिलें तो सुनादेंगे उन्हें दास्ताँ ए हसीना
Friday, April 9, 2010
कर्म का मर्म
जैसा करेगा
वैसा भरेगा
सोएगा तो खोएगा
जागेगा तो पायेगा
कर्म करेगा फल पायेगा
प्यार करेगा प्यार ही पायेगा
दुनिया छोटी हो गयी
हिम्मत कर पार उतर जायेगा
कल करने को टालेगा
फ़िर कैसे पा लेगा
साथ में तेरे बहुत कुछ आया था
जाते बहुत साथ बांधेगा
यह मानव जनम भाग्य से पाया
प्रभु भजन परोपकार से इसे सफल बना लेगा
वैसा भरेगा
सोएगा तो खोएगा
जागेगा तो पायेगा
कर्म करेगा फल पायेगा
प्यार करेगा प्यार ही पायेगा
दुनिया छोटी हो गयी
हिम्मत कर पार उतर जायेगा
कल करने को टालेगा
फ़िर कैसे पा लेगा
साथ में तेरे बहुत कुछ आया था
जाते बहुत साथ बांधेगा
यह मानव जनम भाग्य से पाया
प्रभु भजन परोपकार से इसे सफल बना लेगा
Wednesday, April 7, 2010
लाल झंडा लाल निसान
लाल हाथ लाल खून से रंगे
पुलिस का हो चाहे जनता हत्थे चढ़े
आज ७६ वर्ष में सेकड़ों मरे
देश के कोने कोने में कितने इनके हत्थे चढ़े ?
हिटलर भी उनके हाथ चढ़ गया`
१९६२ में चाचा नेहरु को डस गया
बंगाल की तरक्की वोह खा गया
देखो कितनी तेजी से आसमा पर छा गया
कभी इंदिरा कभी अटल कभी प्रचंड दहल
बंगाल से शुरू केरल पर रहा टहल
देश की आज़ादी में देशद्रोह की मीसाल
देश की तरक्की का विनाश और काल
नक्सल,फारवर्ड, वाम, माओवादी मार्किस्ट आदि
सभी अंदर से एक,दिखते अलग जैसे खांसी बुखार मियादी
प्रेम की भाषा दलाई पुकारते रह गये
हिंदी चीनी भाई भाई सुनाते नेहरु चले गये
इनका तो बस एक ही इलाज़ है
फौज की तैनाती और इनका पूर्ण विनाश है
सरकार में इच्छाशक्ति नही जनता में एका नही
वोटों की राजनीती इनको मरने देती नही
आज हमे ही आगे आना होगा
दे हथियार आदिवासी को इनसे टकराना होगा
जिनकी पैरवी का दावा यह करते है उन्हें इनसे बचाना होगा
वोह जग गये तो यह भाग गए इनको बतलाना होगा
पुलिस का हो चाहे जनता हत्थे चढ़े
आज ७६ वर्ष में सेकड़ों मरे
देश के कोने कोने में कितने इनके हत्थे चढ़े ?
हिटलर भी उनके हाथ चढ़ गया`
१९६२ में चाचा नेहरु को डस गया
बंगाल की तरक्की वोह खा गया
देखो कितनी तेजी से आसमा पर छा गया
कभी इंदिरा कभी अटल कभी प्रचंड दहल
बंगाल से शुरू केरल पर रहा टहल
देश की आज़ादी में देशद्रोह की मीसाल
देश की तरक्की का विनाश और काल
नक्सल,फारवर्ड, वाम, माओवादी मार्किस्ट आदि
सभी अंदर से एक,दिखते अलग जैसे खांसी बुखार मियादी
प्रेम की भाषा दलाई पुकारते रह गये
हिंदी चीनी भाई भाई सुनाते नेहरु चले गये
इनका तो बस एक ही इलाज़ है
फौज की तैनाती और इनका पूर्ण विनाश है
सरकार में इच्छाशक्ति नही जनता में एका नही
वोटों की राजनीती इनको मरने देती नही
आज हमे ही आगे आना होगा
दे हथियार आदिवासी को इनसे टकराना होगा
जिनकी पैरवी का दावा यह करते है उन्हें इनसे बचाना होगा
वोह जग गये तो यह भाग गए इनको बतलाना होगा
Sunday, April 4, 2010
कब करेंगे प्यार
जिन्दगी उसकी जिसका यार
आज नहीं तो कब करेंगे प्यार
जैसे आज नगद कल उधर
प्यार के बिना जिन्दगी बैकार
बिल्कुल ठीक कहा मेरे यार
मारवाडी हम, देते नकद, करते नही उधार
बाहर झांक के देखा तो बिक रहा था प्यार
हम भी आज करेंगे तुमसे प्यार का इकरार
क्योंकी हम प्यार के मसयिया जीन्दगी भर बांटते प्यार
तमाम उम्र गुज़ारी फकीरी में कि खुदा मिलेगा,
जब मिला खुदा तो पूछते हैं कि तू शै क्या है.
फ़साना`ए जीन्दगी येही तो करता है
खुदा सामने तो मासुक की इबादत करता है
फकीरी मुयस्सर हुयी थी किसी की तड़प और duri me
जब मुलाकात हो गयी जान ए तमन्ना से
तो खुदा से उसका नाम पूछता है
Saturday, April 3, 2010
अभिशापित श्रापित जीन्दगी
जीन्दगी का सब से बड़ा संताप
बाप बड़ा ना भैया
सबसे बड़ा रूपया
पैसे की छनक पर गौरी की मुस्कान न्योछावर
दौलत की धमक पर झुकते करते सिजदा सर झुका कर
एक तर्फफ़ रईस का कुत्ता भी गद्दों पर सोता है
एक तरफ मज़दूर का बच्चा स्तनपान को भी रोता है
नहीं उतरता दूध उस गरीब अबला की छाती से
नहीं खायी रोटी तीन दिन बीत गए बिना दिया बाती के
यह अभिशापित श्रापित जीन्दगी
कल सुबह होगी नयी फसल आएगी
इस आशा में इस निर्धन माँ की रात बीत जाएगी
नयी सुबह तो दरवाजे पर साहूकार खड़ा होगा
घर का सदस्य बैल बा बा कर रहा होगा
साहुकार तो रस्सा खोल लेगया
खेती का अब क्या होगा
यह कैसी अभिशापित श्रापित जीन्दगी
कैसी गुलामी कैसा शोषण
दो रोटी के वास्ते बिक गया यह रमणी का गोर तन
कैसा मौन कैसा बोल, गरीबी के तराजू में तुल गया मन
धिक्कारते पुर्वजन्मो के पापों को इस श्रापित अभिशापित दिन
ऐसी है करोड़ों भारतियों की जीन्दगी ......................
बेक़सूर बारिश
बारिश बिचारी का क्या कसूर
वोह तो है हमेशा मजबूर
उसका तो काम ही है बरसना भिगोना
कहीं सिर्फ पल्लू कहीं पूरा सराबोर
मिटटी भी बेचारी क्या करे
उस ने तो बारीश की आहट पाते ही होता है महकना
बेदर्द यह आँखे तरसती दीदार को किसी को
कभी कभी काम कर जाती हैं बारीश सा बरसाना
बारिश तो माशूक के सामने रख लेती है इज्ज़त
आंसुओं को ढक बूंदोंमें समेट लेती हें
कर मत नफरत तू बारिश से औ निशीत
यह तो आशिको की कल्पना, राहत और सहेली है
वोह तो है हमेशा मजबूर
उसका तो काम ही है बरसना भिगोना
कहीं सिर्फ पल्लू कहीं पूरा सराबोर
मिटटी भी बेचारी क्या करे
उस ने तो बारीश की आहट पाते ही होता है महकना
बेदर्द यह आँखे तरसती दीदार को किसी को
कभी कभी काम कर जाती हैं बारीश सा बरसाना
बारिश तो माशूक के सामने रख लेती है इज्ज़त
आंसुओं को ढक बूंदोंमें समेट लेती हें
कर मत नफरत तू बारिश से औ निशीत
यह तो आशिको की कल्पना, राहत और सहेली है
Thursday, April 1, 2010
मानव -प्रभु का वरदान
मानव धर्म में हमे सब कुछ लेना
चाँद देखना सूरज बनना और सीतारों से बाते करना
अपने पराये की बात नहीं पुरे विश्व को दिल में रखना
स्वार्थ परमार्थ की लम्बी कहानी
दोनो के बीच में बड़ी छोटी सी गिनती जानी
माँ को बेटे से बेटे को माँ से स्वार्थ की माँ होती क्या कोई सीमा होती है
लेकिन माँ के जीन्दा रहने तक और मरने के बाद भी सदगति बेटे से ही होती है
सन्यासी साधू को चेले से क्या आस होती है
फिरभी गुरु परम्परा गुरु दीवस गुरु दक्षिणा होती है
मानव धर्म तो स्वार्थ का नाम है
धर्म करता पुन्य कमाता उसे कहते इंसान हैं
राम रहीम रविदास कबीर तुलसी सूर रसखान
बखान गए महिमा नर नारायण की और परिभाषा-ए-शेतान
इसलिए इंसान पहीले फीर सार्थक जीवन यह प्रभु का वरदान
चाँद देखना सूरज बनना और सीतारों से बाते करना
अपने पराये की बात नहीं पुरे विश्व को दिल में रखना
स्वार्थ परमार्थ की लम्बी कहानी
दोनो के बीच में बड़ी छोटी सी गिनती जानी
माँ को बेटे से बेटे को माँ से स्वार्थ की माँ होती क्या कोई सीमा होती है
लेकिन माँ के जीन्दा रहने तक और मरने के बाद भी सदगति बेटे से ही होती है
सन्यासी साधू को चेले से क्या आस होती है
फिरभी गुरु परम्परा गुरु दीवस गुरु दक्षिणा होती है
मानव धर्म तो स्वार्थ का नाम है
धर्म करता पुन्य कमाता उसे कहते इंसान हैं
राम रहीम रविदास कबीर तुलसी सूर रसखान
बखान गए महिमा नर नारायण की और परिभाषा-ए-शेतान
इसलिए इंसान पहीले फीर सार्थक जीवन यह प्रभु का वरदान
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