Tuesday, March 23, 2010

परमारथ का फिलसफा

बहुत हो गया किसी को देख कर दिल का धडकना
पीछे मुड कर देखो क्या कहो दिया और कितना

अभी कुछ बिछड़ा नही कुछ खोया नहीं
जीन्दगी का एक पल भी अगर स्वाति की बूंद तो मोती की कमी नहीं

सफलता कामयाबी हर जीव के लिए अलग होती है
किसी को एक बोतल मिल जाये उसकी जीन्दगी धन्य होती है

कोई एक मधुर मुस्कान पर जीवन न्योछावर करता है
कोई दुसरे की तरक्की देख दुखी और हार पर खुश होता है

गाँधी अफ्रीका में पिटके भी नई उछई पा गये
अहिंसा को हिंसा से लड़ा देश आज़ाद करा गये

देश याद करेगा जे.पी, लोहिया को जिन्होंने देश को दिशा दी
भूल नही सकते दीनदयाल, श्यामाप्रशाद को जिन्होंने एकात्ममानववाद की रचना की
भूलेंगे नहीं शेरपा को जिसने हिमालय विजय किया
धरा का सीना चीरता किसान किसीसे कम नही जो देश का पेट भर रहा

गुरु विनोद बिस्सा कम नही जो हमे सिक्षा दे रहे
रोज नए संवाद पैदा कर हमे आगे बढ़ा रहे

अंत में हर इंसान में देव दानव निवास करता है
हर औरत में माँ,बेटी,बहिन,प्रयसी,सीता , केकई का रूप होता है

मर्यादापुरषोतम राम ने बालीको बेकसूर स्वार्थवस मारा था
धर्मराज युधिस्तर ने भी अस्वथामा हथो - नरो व कुंजरा गुरुवध को उचारा था

क्या एक भी इंच धरती ऐसी है जहाँ कोई मरा नही
क्या ऐसा एक भी इंसान है जिसने चोरी करी नही

इस लिए जहाँ भी मौका पाओ
परमारथ का लुत्फ़ उठाओ -लुत्फ़ उठाओ ........................
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डॉ. श्रीकृष्ण मितल

1 comment:

Udan Tashtari said...

बढ़िया फलसफा!

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हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

अनेक शुभकामनाएँ.