Wednesday, March 31, 2010

मन की दौड़ .....................

पुरे एक माह के पश्चात्
फीर वापिस बच्चों के पास

दिल्ली मथुरा की चिलचिलाती गर्मी से निजात
और मैसूर की मधुर वादी में पुनह वास

दिल के कीतने टुकड़े होते हैं
एक उस के एक तुम्हारे करीब होते हैं

मथुरा में राधावल्लभ बिहारी जी द्वारकाधीश के दर्शन
गुरुशरनानंद जी जैसे निश्चल आत्माओं में विचरण

जीवन का एक विकट, अटल सफल परिक्षण
जीसे सोच सोच प्रफुल्लित होता यह मन

लेकिन घर से दूरनन्हे मुन्ने बच्चों की मुश्कान
अपनी छत, गृहलक्ष्मी द्वारा चाय के प्याले पर उतरती थकान

पिछले २० वर्षो के मित्रो साथिओं की खट्टी मीठी यादें फील्म सी दिखती जाती हैं
जीवन के इस पड़ाव में पुकारती बुलाती पुन :पुन: विचलित करती जाती हैं

यह मन का पवनवेग का एरावत खीच लाता है
दिलासे देता और बहाने बनाता घर पहुँच ही जाता है

हर बार लगती है यह अंतिम मथुरा यात्रा
लेकिन मानव धर्म,
मेरा करम
गोरक्षा में बढ़ते कदम
संकल्पों को पूरा करने का भरम
प्रेरित करता उठाता यह निश्छल ठिठुरा तन
और बढ़ चलते है कदम
कर्मस्थली की और दाब के निष्ठुर मन



Monday, March 29, 2010

भविष्य स्वप्न

भविष्य स्वप्न भूत मार्गदर्शक वर्तमान वास्तविकता
जो भूत में विचरता वोह इंसान स्वप्नों में जीता

आत्मविश्वास की कमी याने भविष्य की क्षति
प्रभु में विश्वाश भूत की हार की याद सफलता को चुनती

मनुष्य भगवान तो नही यहाँ तो उसे भी दायरों में जीना पड़ा
शंघर्ष उसने किया आपदाओं को जीता और भगवान् बना

संघर्ष तेरी नियति संघर्ष कर संघर्ष कर कामयाबी सामने खड़ी
तू पस्त हुआ, संघर्ष से मुह मोड़ा, फीर तेरी किस को पड़ी

दिल ए दर्द ए नादाँ का क्या कहना

तेरा दर्द चाट गया मेरा बदन
कुछ ज़िंदगी ने पी लिया अन्दर तलक मुझे
..........
दिल ए दर्द ए नादाँ का क्या कहना
कुछ पी गया मेरा दर्द और तेरा सीना

जींदगी का सफ़र और उस के यह खुबसूरत पड़ाव
कुछ पल हमारे साथ कुछ पल अपने साथ बिताओ

यादों के झरोखे से जब झांकोगे
हमारी खुशबु आएगी हमे करीब पाओ

वक्त कि हर् शह गुलाम


वक्त कि हर् शह गुलाम, हर कोयी इसे करता सलाम
मस्ती मे भुल जाता अपनो को, करता दुजो का जीना हराम

वक्त का मारा ठोकर खाता, मिलता नही उसे आराम
दुजे का किया वो भुगतता, दोषी सारा मुक्कदर और राम

नानक दुखिया सब सन्सार, दुख कट्ते मिल जुल हरबार
जब तुम रोते कोयी साथ ना रोता, ह्न्सते पुर सन्सार

गरीब की जौरु सब की भाभी, रइस का कुत्ता बिस्कुट खाता
इस दुनिया की रीत येहि, मरने वाले के साथ कोयी नही जाता

दिन के बाद मे रात अगर आती, तो रात के बाद दिन भी आता
फिर येह इन्सान अपने सुख के पल क्यो नही बाट बिताता

कह गये ग्यानि सारे,दुख बाट्ने वाले को सुख हि सुख मिल
ता
कर परवाह होगी परवाह ,येह सत्य मानव क्यो नही अपनाता

Saturday, March 27, 2010

माँ बाप मजधार में

पढ़ लिखकर बाजार में लेते फिरता सीख
घर चलाता अनपढ़, ढोता माल बोझा खीच

मांग काढ जुल्फ बना ढूंढे नोकरी को
घर पर गांठे रोब, तोड़े रोटियां,पाठ पढ़ावे सबको

नोकरी अगर मिल जाये तो भी किस काम को
गाँव छोड़ शहर को भागे ठोकर मारे माँ बाप को

कबीरा काम का ना काज का पढ़ा लिखा
इसको को तो चाहिए मेज कुर्सी चाहे किस्तों पर लेआ

नकल मार के पास हुआ और रिश्वत दे के नोकर
चमचा बन के तरक्की पाई मेमसाब का बन कर

चांस लग गया तो विदेश गया दुल्हनिया को छोड़ कर
गिट पिट कर मेम पटाई भुला अपना गाँव घर

कबीरा इस संसार में तू किस पर भरोसा करता सोच सोच कर
यह भी पढ़ लिखने की रीत है बढ़िया तू तो बुनकरका बुनकर

Tuesday, March 23, 2010

परमारथ का फिलसफा

बहुत हो गया किसी को देख कर दिल का धडकना
पीछे मुड कर देखो क्या कहो दिया और कितना

अभी कुछ बिछड़ा नही कुछ खोया नहीं
जीन्दगी का एक पल भी अगर स्वाति की बूंद तो मोती की कमी नहीं

सफलता कामयाबी हर जीव के लिए अलग होती है
किसी को एक बोतल मिल जाये उसकी जीन्दगी धन्य होती है

कोई एक मधुर मुस्कान पर जीवन न्योछावर करता है
कोई दुसरे की तरक्की देख दुखी और हार पर खुश होता है

गाँधी अफ्रीका में पिटके भी नई उछई पा गये
अहिंसा को हिंसा से लड़ा देश आज़ाद करा गये

देश याद करेगा जे.पी, लोहिया को जिन्होंने देश को दिशा दी
भूल नही सकते दीनदयाल, श्यामाप्रशाद को जिन्होंने एकात्ममानववाद की रचना की
भूलेंगे नहीं शेरपा को जिसने हिमालय विजय किया
धरा का सीना चीरता किसान किसीसे कम नही जो देश का पेट भर रहा

गुरु विनोद बिस्सा कम नही जो हमे सिक्षा दे रहे
रोज नए संवाद पैदा कर हमे आगे बढ़ा रहे

अंत में हर इंसान में देव दानव निवास करता है
हर औरत में माँ,बेटी,बहिन,प्रयसी,सीता , केकई का रूप होता है

मर्यादापुरषोतम राम ने बालीको बेकसूर स्वार्थवस मारा था
धर्मराज युधिस्तर ने भी अस्वथामा हथो - नरो व कुंजरा गुरुवध को उचारा था

क्या एक भी इंच धरती ऐसी है जहाँ कोई मरा नही
क्या ऐसा एक भी इंसान है जिसने चोरी करी नही

इस लिए जहाँ भी मौका पाओ
परमारथ का लुत्फ़ उठाओ -लुत्फ़ उठाओ ........................
--
डॉ. श्रीकृष्ण मितल

Sunday, March 21, 2010

अभिलाषा

बहुत मैं ने मंदिर धोके.
पीर पैगम्बर ओझे देखे

तीरथ नदिओं में स्नान किया,
अभिलाषा बतलाई और सवाल किया

मुझे अजर कर दो अमर कर दो
सब ने बतलाया`हाथ जोड़ के दो


पूरी होगी अभिलाषा, मार्ग बताया यह वरदान दिया
आने वाली नस्लें याद करें की इस धरा पर कोई हुआ

तुम्हे अमर होने की अभिलाषा तो सिर्फ एक बहाना है
मृत्यू अटल है मिलनी सबको, जिसको तो आना ही आना है

पूरी करनी अभिलाषा तो ,दीन दुखी का दर्द दूर भागना है
छोड़ मजहबपरस्ती- कर सेवा- जिससे भगवान को पाना है

जन्नत को नर्क बनाने वालों पर दावानल बन छा जाना है
धधको अग्नि दावानल जैसे तुम्हे कुछ कर के दिखाना है

जिनका दिल साफ़ नही और अग्नि सा जो जल धधक रहे
पहिचान उन देश द्रोहिओं को तुमने उन्हे अग्निकुण्ड में डुबाना है

धरा पर संघर्ष करवाने वालों को नंगा कर प्रेमपथ उनसे ही बनवाना है
आज धर्म के ठेकेदारों ने कहर ढाया उन्हें राह पर लाना है

तुम तो अमर हो जाओगे पर उन्हें इंसान बनाना है
बढे चलो मुड के ना देखो तुम्हे वीर गति पाना है

पूरा देश तुझे निहारे तू तो अमर होगया
यह मिटटी का चोला रहे ना रहे तेरा नाम तो सभी ने माना है

राम रहीम गोतम ना रहे पर क्या उनकी मौत हो गयी?
कर्म करे तू वैसे, फ़िर, तेरी अमर होने की अभिलाषा तो पूरी होगयी

डॉ. श्रीकृष्ण मित्तल

Saturday, March 20, 2010

प्राणी धर्म

प्राणी धर्म
वोह मुख क्या पाक जो सिर्फ राम रहीम का जप करे
या वोह हाथ जो मैल उठाता,लेकिन दूसरों की मदद करे .

कहते हैं गिलहेरी को राम ने उठाया था
उसे बड़े बड़े तपसियों से भी ऊँचा बताया था

मरा मरा जप के रत्नाकर बाल्मीकि बन गये
प्रकांडपंडित तिर्कालदर्शी त्रिलोकविजेता एक दिन लद गये

सिकंदर खाली हाथ आया था खाली हाथ ही गया
लेकिन हार कर भी पोरस अपना नाम अमर कर गया

क्या हिंदु क्या मुस्लिम क्या करुं धर्मो की बात
धर्म तो सारे प्रेम सिखाते पर हम फैलाये उत्पाद.

मानव, मानव के काम न आये ये तो नादानी है
बेअदबी,
इर्षा
मक्कारी,
नमकहरामी
गरूर,
शरूर,
बेइमानी,
बदकारी
का जीना,दुश्वारी और बेमानी है

इस मानव जीवन की बस एक कहानी है
कर भला हो भला,जो मान ले,वो ही प्राणी है
--
डॉ. श्रीकृष्ण मितल
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Thursday, March 4, 2010

होली के हुल्लड

दिल तुम्हारा रहे जवान
और खेलो होली राधाओं से
चले शेर और मीठी जुबान
हम तुम्हारे आशिक
होली पर करते तुम्हे प्रणाम
आया जाओ मैसूर खेलेगे होली
भर के बाल्टी और पिचकारी बेजुबान
लाना भर के झोला रंग गुलाल मिठाई
मिलेगी भोजाई हमारे से .
भांग के नशे में, रंगों के अँधेरे में
कोन किसे पहिचानेगा
कोन किसे पुकारे गा
जो सामने आगयी उसे ही रंग डालेगा
भौजी किसे बीबी किसे,
आज तो हर गोपी भोजाई नज़र आती है
गली में निकलो तो सही
रंग की दुकान पर
हुल्लाडों की भीड़ नज़र आती है
चला रहे नैनों के बाण -
हाथ में पिचकारी तान
पुरे साल की जवानी आज ही तो रंग लाती है
छुपे के तान फिर देख कैसे गोपी बिना रंगे निकल जाती है