Tuesday, April 7, 2009
बड़ी कमजोर निकली तुम्हारी यारी रब्बा
"भूले है रफ्ता रफ्ता उन्हें मुद्दतों में हमकिश्तों में खुदखुशी का मज़ा हमसे पूछिये !
बड़ी कमजोर निकली तुम्हारी यारी रब्बा
दो दिन नजरों से दूर हुए तो खुदकुशी की धमकी दे दी
कहीं हमारा जनाजा निकल जाता तो शायद .............
हुजुर तो जन्नत नशीं होती
अरे हम ऐसे वैसे आशिक नही
जो भूलने दे अपने रकीब को
अपना जलवा दिखाने को कभी कभी पर्दा भी डलता है
आज हमारा जलवा पूरा हिंद देख और सरहा रहा है
कुछ काम का बढ़ना, कुछ कामयाबी का और आगे बढना
कर गया मजबूर,और महरूम इस नाचिच को,
दोस्तों से दुआ सलाम करना
दिल चीर कर दिखा सकते नहीं वर्ना
तुम्हे अचरज होता
अरे वहां तुम्हारे अलावा और किसी का अक्श भी कैसे होता
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