सड़कें,
खेतों से लम्बी हो गई ।
जिन्हें लौटना था साँझ ढले
वो बहुत दूर निकल चुके।।
दिन में घर से आती रोटी छाछ
कितने ही जिन बैलों को
लोटना था, वो कट चुके।।
ट्रेक्टर अब आम हो गए
सड़कों पर दिख रहे।
किसान मजदूर बन गए,
खेत फार्म बन चुके।।
सड़क
अब दिलों में भी बन गई
संबंध करवट बदल रहे।।
परिवार टूट रहे
नित्य प्रति तलाक हो रहे
रोज पाँच मील
पगडंडी पर चलने वाले
आज ट्रेक्टर मे डीजल की
इंतजार मे
क्योंकि सड़क बन गई
डा श्रीकृष्ण मित्तल
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