मुझे नहीं फुरसत दुश्मनी की।
मुझे कहां कमी है अपनो की।
मैं तो व्यस्त हूं अपनो,
मित्रों का प्यार संयोजनें में।
क्या रखा है दुखड़े रोने में।।
मुझे पसंद खुशबूदार बगीचे
नीला आसमान, बहते दरिया
मैं क्यों सोचूं
अदावती,शैतानों के बारे में।
जिंदगी मिली है जीने के लिए
कुछ करने कुछ करवाने के लिए
समय की कद्र,सदुपयोग,
कामयाबी की और।
मेरी तजुरी खुलती है
महज एक ही और।
जीवन के इस पड़ाव में
जब मैं मुड़ के देखता हूं।
मुझे दिखता है तुम्हारा प्यार
फूलों सी खुशबू
इतर की महक
मां से मिली ठंडक
समाज, क्षेत्र, देश से मिले
तमगे, माला, सम्मान
मुझे नहीं फुरसत,
भोकने वालों,
पीठ पर खंजर घोपने वालों को
जवाब देने की
क्योंकि मुझे अहसास है
एक दिन,उनका भी प्यार
मिलने का मुझे विश्वास है
*डा श्रीकृष्ण मित्तल*
No comments:
Post a Comment