प्रिये तुम बहुत याद आती हो
जीवन के हर मोड़ पर तुमने साथ दिया
हर ख़ुशी दी, हर सुख दिया ||
गत ५० वर्षो के संग की याद आती है
विवाह की स्मृति सर्वदा मनमंदिर पे छा जाती है ||
प्रथम पुत्र प्राप्ति की पूर्व संध्या में
हमने बाबी देखी थी और बाबी आया था
शीघ्र ही कन्या रत्न व् दित्य पुत्र भी पाया था ||
प्रिये तुम बहुत याद आती हो
गृहस्वामिनी, भाग्यवान सर्वदा प्रभु में आस्थावान थी
व्रत, पूजा, उजमन, यज्ञ तीर्थ,दान में निष्ठावान थी
मेरी प्रिया, अर्धांगनी, मेरी प्रेरणा, मेरी जान थी
नाम ही नहीं रूप और कर्म में लक्ष्मी समान थी ||
बाबा दादी पिता-माता जी के देहांत पर
तुमने अहम् काम निभाया था
मेरे सभी भाइयों को पुत्रवत अपनाया था
अपनी ननद को सुख में विदा किया
दौरानियों ने बहिन रूप में पाया था||
प्रिये तुम बहुत याद आती हो
नहीं भूलता कन्या विदा करना और बहूएँ लाना दिल्ली, बेंगलोर और वृन्दावन का विवाह ठिकाना|
सुन्दर जामाता, बहूएं आई घर में
ख़ुशहाली और प्रसन्नता का खजाना ||
सुन्दर दोहती पौत्रों का प्रशाद मिला
घर खुशियों से भर गया तुम्हारा मन खिला ||
प्रिये तुम बहुत याद आती हो
मै थका हारा आता,
तुमसे उर्जा उत्साह पाता था||
मेरे हर निर्णय मेंतुम्हारा योगदान होता था
जीवन के झंझावात में तुम साथ देती थी
संगनी भार्या मित्रसमान चर्चा करती,
राय देती थी ||
प्रिये तुम बहुत याद आती हो
जब श्रंगार कर तुम सामने आती थी
मेरी तो अपलक आँखें तुम पर टिक जाती थी याद आता तुम्हारा रूठना और मेरा मनाना तुम्हारा मुझे झुकाना और फिर मान जाना ||
प्रिये तुम बहुत याद आती हो
अजब हमारी गृहस्ती थी
कितनो को भाती, कितनो को खलती थी ||
हम मोर मोरनी की तरह चलते थे
घर बेघर, ऊपर नीचे, देश परदेश,
हर हाल- अभाव में भी में प्रसन्न रहते थे
हमने मधु यामनी के मधुर पल भी संजोये थे
प्रिये तुम बहुत याद आती हो
गावं हो या नगर,देश या विदेश पल पल
हम जीए थे||
कलकता,मुंबई, काशी, गया, आगरा का ताज या वृन्दावन दार्जलिंग,शिमला,मसूरी काश्मीर नैनीताल उंटी, कोडई,चेन्नई,
मैसूरकी चामुंडी माँ केदार,नीलकंठ,बद्रीविशाल मदुरई मीनाक्षी या वैशनवी माँ,
अग्रोहा, रामेश्वरम,तिरुपति, राधावल्लभजी बयावला,
बिहारीजी आदि दर्शन नेपाल, मलेशिया,सिंगापुर, या श्रीलंका की मधुर यादें
घुमड़ घुमड़ कर आती छाई यादें
मन पर हर पल आदेशों का पालन करती मेरी दिलबर |
प्रिये तुम बहुत याद आती हो
बहूत सी कामनाएं बाकी हैं
तुम्हारीकमी रहेगी परन्तु थाती हैं
आज परिवार में सम्पन्नता खुशहाली है
तुम्हारी कमी कैसे पूर्ण होगी
पूछता यह सवाली है||
प्रिये तुम बहुत याद आती हो
सोच सोच थर्राता हूँ ।
अब यह समय कैसे निकलेगा
पुत्र पुत्रवधू पौत्र, बेटी दामाद भाई बहुओं का बंधू बांधवो संगी साथियों का साथ तो मिलेगा दिल को बहुत समझाता हूँ ||
प्रिये तुम बहुत याद आती हो
हर पल हर क्षण हर कार्यमें तुम याद आओगी इस याद में ही कभी यह जान निकल जाएगी
प्रिये, इन्तजार करना
ऊपर जल्दी ही साथ आऊंगा
सात जन्मों का वादा था
तुम्हे भी निभाना होगा
मै भी शीघ्र निभाऊंगा. ........................
.डा श्रीकृष्ण मित्तल
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