हमने ना जाने कितनी दिवाली साथ मनाई
हर दिवाली लक्ष्मी रूप में,लक्ष्मी साथ आई।
कितने ही आरती पूजन साथ किए।
घर दुकान कारखानों में दीप रोशन किए।
पटाखों के धमाकों और शोर में,
फूलझाड़ियों की झरझर में
मिठाई की सुगंध मिठास में
नूतन सुंदर जेवर परिधान में
हर साल तुम मन पे छा जाती थी
नही भूल पा रहा
तुम्हारा दमकता चमकता चेहरा
तुम्हारा उल्लास भरा आभास
दिवाली तो इस वर्ष भी आ गई
पर तुम ना जाने कहां खो गई।
दीप भी जलेंगे
पटाखे भी चलेंगे
मिठाई भी बटेंगी
बोनस भी बटेगा
पूजा भी होगी
लेकिन तुम..........
ना जाने कहां खो गई
यादों के झरोखों में
पलक की कोरो में
हृदय के कोनों में
ढूंढती तरसती आंखें
हर एक की तरसती भावना
मेरे मन में बसी तरसती आत्मा
वर्षों से मेरी प्यारी सखी
मेरे परिवार की एकल कड़ी
दिवाली तो आ गई
पर तुम ना जाने क्यों रूठ गई
ना जाने तुम, कहां खो गई।
यह रूखी बेरंग दिवाली
तुम्हारे बिना नही मनानी
यह अधूरी दिवाली .....
No comments:
Post a Comment