जीवन के सुंदर 45 वर्ष कैसे व्यतीत हो गए।
लगती कल कि सी बात जब तुम हम बंध गए ।।
मम्मी-डेडी,
दादी-बाबा,
चाचा-चाची,
मांमा-मामी,
मौसा-मौसी
अनुज गौरीशंकर,अनिल, विमल,अजय और
बहिन लक्ष्मी खुशी में झूमते गए।।
सजा था लश्कर दिवानो का घोड़ी पर हम इठलाये|
यार दोस्त पीछे रहे नही नाचे गाये धूम मचाए ||
सामने अगवानी को बहूत खड़े थे|
सालीके हाथ में नीम की डाली
सासू लिए आरते की थाली
ना जाने कितने निहारते खड़े थे ||
एक हम थे जो पहन कर हार तुम्हारा हम बिके थे |
सब के सामने गर्दन नीचे कर तुम्हारी छवि निहार रहे थे ||
फेरो की बेला आयी
कन्यादान की रस्म अदाई
फिर हुयी तुम्हारी भाव भीनी विदाई
और आँखे गीली करती,
सबको निहारती
मुझ पर विश्वास करती
तुम मेरे संग चली आई ||
27 नवम्बर 1972 का शुभ दिन भूलेगा नही।
जब तुम हम ही, नही दो परिवार एक होगये।।
गृहस्ती आगे बढ़ी हम दो से पांच हो गये ।
नितिन पूजा चेतन जैसे फूल खिल गए।
प्रवाह रुका नही
शीला,बेला, राकेश के बिना परिवार अधूरा,
मोहित, मिहिर,कोमल, गौरव,केशव,माधव
जैसे मनमोहक पौत्र,दोहित्रि,दौहित्र आज बड़े हो गए।।
मैं अत्ति भाग्यशाली देश के हर क्षेत्र में
आप जैसे शुभचिंतक मित्र मिल गए।।
लगती कल कि सी बात जब तुम हम बंध गए ।।
मम्मी-डेडी,
दादी-बाबा,
चाचा-चाची,
मांमा-मामी,
मौसा-मौसी
अनुज गौरीशंकर,अनिल, विमल,अजय और
बहिन लक्ष्मी खुशी में झूमते गए।।
सजा था लश्कर दिवानो का घोड़ी पर हम इठलाये|
यार दोस्त पीछे रहे नही नाचे गाये धूम मचाए ||
सामने अगवानी को बहूत खड़े थे|
सालीके हाथ में नीम की डाली
सासू लिए आरते की थाली
ना जाने कितने निहारते खड़े थे ||
एक हम थे जो पहन कर हार तुम्हारा हम बिके थे |
सब के सामने गर्दन नीचे कर तुम्हारी छवि निहार रहे थे ||
फेरो की बेला आयी
कन्यादान की रस्म अदाई
फिर हुयी तुम्हारी भाव भीनी विदाई
और आँखे गीली करती,
सबको निहारती
मुझ पर विश्वास करती
तुम मेरे संग चली आई ||
27 नवम्बर 1972 का शुभ दिन भूलेगा नही।
जब तुम हम ही, नही दो परिवार एक होगये।।
गृहस्ती आगे बढ़ी हम दो से पांच हो गये ।
नितिन पूजा चेतन जैसे फूल खिल गए।
प्रवाह रुका नही
शीला,बेला, राकेश के बिना परिवार अधूरा,
मोहित, मिहिर,कोमल, गौरव,केशव,माधव
जैसे मनमोहक पौत्र,दोहित्रि,दौहित्र आज बड़े हो गए।।
मैं अत्ति भाग्यशाली देश के हर क्षेत्र में
आप जैसे शुभचिंतक मित्र मिल गए।।
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