Wednesday, August 23, 2017

तीन तलाक पर तबसरा


सायरा ,सबीना या मुमताज यही सोचती थी
ईंसाफ निराला ये देश के काजीे कैसे करेंगे
कठमुल्लों के फतवे फरमान हैं चरम पर
अंधे लालची हैवानों का मुख कैसे काला करेंगे
हलाले के ख्वाबो मे मौलवी था मतवाला
माल काटेंगे औरं मजलुमो संग मजे करेंगे
खुदाई खिदमतगारो का दिवाला, इसी दर्द ने निकाला कि
अब तलाक होगया गैरकानुनी, तो हलाला कैसे करेंगे
लव जिहाद के मतवाले होगये गारत
निकाह तो कर लेंगे, तलाक कैसे करेंगे

भला हो सुप्रीमकोर्ट का, 9करोड खातूनो ने दी दुआ
अब जिंदगी बेखोफ अमन चैन से जियेंगे
सदका राखी का जो बांध थीं मोदी की कलाई पे
हिफाजत का पूरा किया बिरादर ने वादा, जिंदगी भर याद रखेंगे
-डा: श्रीकृष्ण मित्तल

Thursday, August 3, 2017

बिहार में भरत मिलाप

दे दी पटकनी लालू राहुल को तुम दोनों ने बिना खडग बिना ढाल
पटना के रन बांकुरों नितीश मोदी, तुमने कर दिया कमाल

कल तक लालू यशस्वनी गुर्राते थे  बार बार
राज में ना थी बिजली ना रक्षा था  केवल भ्रष्टाचार 

नीतिश कोस रहे थे वोह घड़ी जब लालू से हाथ मिलाया था 
वोह समय जब आधी छोड़ पूरी को ललचाया था 

इधर लालू के गुर्गो ने अपना रूप दिखाया था
सुशासन बाबू की प्रतिष्ठा को कोठे पर बैठाया था 

चाणक्य निति ने फिर दो बिछड़ो को मिलाया 
जयप्रकाश जी के सूरज चाँद को साथ दिलाया 

नितीश ने दे मारा इस्तीफा तान के 
चंगुल से बाहर आ गए सीना तान के 

सरकार तो युगल जोड़ी ने चलानी थी 
कुछ घडियों के बिछोह की कष्ट भरी यादें मिटानी थी 

सामने थी बेकारी, अन्धकार,  और सूखा बाढ़ गरीबी लाचारी
साथ थी हिम्मत, हौसला, संगठन शक्ति और दयानतदारी

लालू जेसों का तूफ़ान और अंधकार विरासत में मिला था 
सामने समस्याओं का, बड़े बोलों का, लम्बा सिलसिला था

कुछ दिनों पूर्व का दृश्य याद करो साथियों 
२०१० के चुनावों का स्मरण करो भाइयों 
कहीं राम
कही राहुल
कहीं माया
कहीं लल्लू   
कुरुक्षेत्र सज चूका था
बिहार चुनाव धधक चूका था

हमले हुए, तीर चले आरोप लगे
अपने पराये हुए, दिल में खंजर से लगे

जनता पर विश्वास था कर्म पर था भरोसा
साथ कमल सा कोमल और तीर सा कठोर था

शरद, शिवानन्द, ठाकुर, रविशंकर
शाहनवाज, शुष्मा, लालजी से साथ कर

भीड़ गये बौल हर हर महादेव अल्लाह हो अकबर
सामने लालू राबड़ी, रामविलास, राहुल सोनिया  एक से एक बढ़ कर

काम जीत गया, विश्वाश बढ़ गया
नतीजे आज आये तो नशा सा चढ़ गया

एक दो नही  २०० भी पार होगये
सामने तो तीन चार बीस बाईस रह गये

रन बाकुरे नही संभल सके जीत को और  साथ निभाना
उस ही का परिणाम देख भुगत अपनी गलती को माना 

जनता की अरदास दोनों से लम्बा साथ निभाना 
कमल खिला रहे, तीर पैना रहे जनता की आस पुराना 

डॉ श्रीकृष्ण मित्तल