हर सेवा निवृत की जबानी है
हर घर की यही कहानी है।
रखो व्यस्त खुद को
हर काम अर्पण प्रभु को।
कुछ लिखो
कुछ पढ़ो
कुछ सुनो
कुछ सुनाओ
कुछ यात्रा, कुछ विश्राम
कुछ आराधना, कुछ ध्यान
खुश रहो, पूर्ण करो, बाकी अरमान
सेवानिवृत्ति के बाद का एक दृश्य यह भी—
जब से सेवानिवृत्त हुआ हूँ,
परिवार हो गया हूँ,
सारे परिवार की ज़रूरतों का,
आधार हो गया हूँ।
सुनसान घर का चौकीदार, ब
च्चों के लिये घोड़ा,
बहुओं के लिये बैंक,
रिश्तों को व्यवहार हो गया हूँ।
याद आने लगे सब रिश्तेदार,
तन्हाई से बचने को,
व्यस्त रहने को, समाज का
कर्णधार हो गया हूँ।
अपने ही बच्चे कहते कंजूस,
धन पर कुंडली बताते,
खुले हाथ से खर्च किया,
सबको स्वीकार हो गया हूँ।