याद आता 1970-72का जमाना।
जब खाते थे एक दस्तरखान पर खाना।
जब खाते थे एक दस्तरखान पर खाना।
झुम्मन चाचा के कडक सेवियो वाले छोलै।
दिल्ली कालेज के यारो के संग होले होले।
दिल्ली कालेज के यारो के संग होले होले।
ईद पर यारो के घरो मे मिलती थी ईद्दी ।
ना हिंदू ना मुस्लिम होती थी यह ईद्दि।
ना हिंदू ना मुस्लिम होती थी यह ईद्दि।
वो बल्लीमारान की मोटी जलेबी।
दौलत की चाट और बड साबुल्ला के मिया जी की कचोरी।
दौलत की चाट और बड साबुल्ला के मिया जी की कचोरी।
आज यह कुछ भी नही बचा।
ना सितारामबाजार की चाट ना झुम्मन चच्चा।
ना सितारामबाजार की चाट ना झुम्मन चच्चा।
फिर भी मै अपने अतीत को याद रखता हुं।
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादे सपने की तरह देखता हूँ ||
जब आई एस आई हिज्जबुल आतंकवादी सुनता हुं ।
इन मे अपने आज और अतीत को टटोल रोता हूं |।
अरदास करता हू भगवान -अल्लाह क्राईस्ट नानक से।
मांगता हूँ पुराने दिन अमन शांति उन सबसे
मांगता हूँ पुराने दिन अमन शांति उन सबसे